Book Title: Umravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 15
________________ अर्चनार्चन / १२ क्रोध, मान, माया और लोभ को सर्वथा नियन्त्रित कर, इन्द्रियों को वश में कर अपने आपका उपसंहरण-संवरण करो, दूषित पाचरण से बचो।' वचन क्या थे, हृदय को वेध डालने वाले अमोघ वाण थे। उनका तत्काल प्रभाव हुमा । लिखा है-- संयममयी राजीमती के सुभाषित-सुन्दर, उत्तम वचन सुनकर रथनेमि उसी प्रकार संयम में स्थिर हो गये, जैसे अंकूश द्वारा हाथी नियन्त्रित हो जाता है। यह नारी की अद्भुत महिमा का एक अति सुन्दर उदाहरण है। एक पतनोन्मुख पुरुष को, जो लगभग पतन के कगार पर था, अपनी तपःपूत वाणी द्वारा अभिप्रेरित कर, उद्बोधित कर एक परमपावन नारी ने बचा लिया । नारी के उत्कर्ष, गौरव और माहात्म्य का यह स्रोत कभी सूखा नहीं, उसके त्यागतितिक्षामय अमृत जल से प्राप्लावित जो होता रहा। अब हम जरा भगवान् महावीर के युग का विहंगावलोकन करें। भगवान ने साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप में चतुर्विध धर्मसंघ की प्रतिष्ठापना की। संघ के अन्तर्गत समग्र साध्वीवृन्द की अधिनायकता चन्दनबाला पर थी। प्रभु महावीर द्वारा प्रवजित यह साध्वी संयम-साधनामय जीवन की वह उद्दीप्त दीपशिखा थी, जिसके ज्योतिकणों से सारा युग पालोकित था। चन्दनबाला, मां धारिणी और रथिक का इतिवृत्त जैन वाङमय का वह प्रसंग है, जहाँ नारी का व्यक्तित्व एक अबला के रूप में नहीं वरन् परम सबला, शक्तिमती, तेजस्विनी, प्रोजस्विनी के रूप में निखरा है। शील-रक्षा के लिए धारिणी द्वारा स्वयं प्राणों का विसर्जन एक ऐसा बलिदान है, जो नारी के अमल, धवल चरित्र को सदा उजागर करता रहेगा। १. पक्खंदे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं । नेच्छन्ति बंतयं भोत्तं कुले जाया अगंधणे ॥ धिरत्थ तेऽजसोकामी ! जो तं जीवियकारणा। वन्तं इच्छसि आवेळ सेयं ते मरणं भवे ।। अहं च भोयरायस्स तं च सि अन्धगवण्हिणो। मा कुले गन्धणा होमो संजमं निहुप्रो चर ।। जइ तं काहि सि भावं जा जा दिच्छसि नारियो । वायाविद्धो ब्व हडो अट्रिअप्पा भविस्ससि ।। गोवालो भण्डवालो वा जहा तद्दव्वऽणिस्सरो। एवं अणिस्सरो तं पि सामण्णस्स भविस्ससि ।। कोहं माणं निगिहित्ता मायं लोभं च सव्वसो । इन्दियाइं वसे काउं अप्पाणं उवसंहरे ॥ -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २२, गाथा ४२-४७ २. तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइयो।। -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २२, गाथा ४८ आई घड़ी जिंदन को RU कमल के वंदन की Lain Education detection For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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