Book Title: Tulsi Prajna 2005 04 Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ आचार्य महाप्रज्ञ ने तमस्काय और ब्लेक होल (कृष्ण-विवर) पर भगवती भाष्य में विस्तृत टिप्पणी दी है। विज्ञान के नवीनतम अनुसन्धानों को भी अपने अध्ययन का विषय बना कर तथा जैन दर्शन से तुलना कर उन्होंने विज्ञान और दर्शन दोनों को निकट लाने का स्तुत्य प्रयत्न किया है। तमस्काय और कृष्ण-राजि की समानताएं और विषमताएं बताते हुए इनकी ब्लेक होल (कृष्ण-विवर) से तुलना की है। तमस्काय और कृष्णराजि की तुलना . तमस्काय और कृष्णराजि में कुछ समानता भी है और कुछ विषमता भी है। समानताएँ 1. दोनों में वर्ण काला, कृष्ण अवभास वाला, गम्भीर, रोमाञ्च उत्पन्न करने वाला, भयंकर, उत्त्रासक और परम कृष्ण है। इसका तात्पर्य हुआ कि ये दोनों ऐसे पुद्गल-स्कन्धों से निर्मित हैं, जिसमें से प्रकाश की एक भी किरण बाहर नहीं जा सकती। इस तथ्य की वैज्ञानिक व्याख्या यह है कि उन पुद्गलों का घनत्व इतना अधिक है कि उसमें से प्रकाश-अणु जैसे सूक्ष्म पुद्गल भी बाहर नहीं आ सकते। इस माने में विज्ञान के 'कृष्ण विवर' के साथ इनकी समानता है। 2. परिमाण की समानता-विष्कम्भ की अपेक्षा से तमस्काय दो प्रकार का होता है संख्यात हजार योजन वाला तथा असंख्यात हजार योजन वाला। कृष्णराजि केवल संख्यात हजार योजन वाली होती है। 3. परिधि की अपेक्षा से दोनों असंख्यात हजार योजन वाले होते हैं। 4. आयाम की अपेक्षा से कृष्ण राजि असंख्य हजार योजन वाली होती है। तमस्काय का आयाम निर्दिष्ट नहीं है। 5. वहाँ गृह आदि का अभाव-तमस्काय और कृष्णराजि दोनों रिक्त स्थान हैं- वहां न घर हैं, न दुकानें, न सन्निवेश। विषमताएं 1. तमस्काय और कृष्णराजि में मुख्य अन्तर यह है कि तमस्काय मुख्य रूप में अप्कायिक (जल) है, जबकि कृष्णराजि मुख्यतः पृथ्वीकायिक (पृथ्वी) है। 2. तमस्काय में बादर पृथ्वीकाय और बाहर अग्निकाय नहीं है, कृष्णराजि में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय एवं बादर वनस्पतिकाय नहीं हैं। तुलसी प्रज्ञा अप्रेल – जून, 2005 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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