Book Title: Tulsi Prajna 2004 04 Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ लोगों को कुछ सीमा तक सामाजिक विषमता को स्वीकार कर लेना चाहिए पर वस्तुतः व्यक्ति सामाजिक विषमता की वैधता को स्वीकार नहीं करता। विषमता की वैधता कितने ही तर्कों के बावजूद स्वीकृत हो भी नहीं सकती। कार्य करने वाला वर्ग कभी भी संपत्ति के वर्तमान वितरण को उचित और न्यायपूर्ण नहीं मान सकता और न ही आय के वितरण को प्रबंधक व व्यवसायी वर्ग में प्रतिभा व चातुर्य के आधार पर उचित ठहराया जा सकता है। आय की विषमता समाज में न्यायोचित एवं वांछनीय हो सकती है, बशर्ते कि वह समाज की विषमता को कम करने में सहयोग करती हो। मूलभूत सामाजिक आवश्यकताओं को सभी में समान रूप से वितरित नहीं किया जाए अथवा कमजोर वर्ग के पक्ष में उसका वितरण नहीं हो तो आय की विषमता उचित नहीं ठहराई जा सकती। सामाजिक न्याय का यह सिद्धान्त विषमता के बारे में आर्थिक व सामाजिक विचारधारा का विकास करता है तथा यह संदेश भी प्रसारित करता है कि समानता वांछनीय है, क्योंकि इसके पक्ष में नैतिक तर्क है एवं समाज के सभी सदस्यों और विशेषकर समाज के कमजोर वर्गों को यह सिद्धान्त लाभ पहुंचाता है। सामाजिक समानता अपरिहार्य : प्रजातंत्र में समानता ऐसे शिक्षित और विवेकी मतदाताओं के विकास में सहायक होती है जो सार्वजनिक नीतियों के निर्माण की प्रक्रिया में सहभागिता व विचार-विमर्श के अवसर प्रदान करते हैं। मतदाताओं की राजनैतिक सहभागिता, राजनैतिक जागरूकता व विश्वास बढ़ाने में भी सहायक है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तो यह है कि सामाजिक समानता राजनैतिक और सामाजिक स्थिरता की आवश्यक शर्त है। इस दृष्टि से सामाजिक व आर्थिक समानता राजनैतिक समानता से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। समाज में विषमताओं की कमी जहां एक ओर सामाजिक तनाव व संघर्षों में कमी लाती है, वहीं वह समूहों के बीच सहयोग विकसित कर सामाजिक शांति का आधार भी बनती है। नागरिकों के कार्य ही समाज-संरचना में स्थित राजनैतिक तनावों व हिंसा को कम करते हैं। यह सत्य है कि राज्य के द्वारा किया जाने वाला सामाजिक कल्याण विषमता पर आधारित वर्ग संघर्षों को तो रोकना है पर अन्ततः वह सामाजिक समानता से ही निर्देशित होता है। समस्त कल्याणकारी कार्य इसी सिद्धान्त को ध्यान में रखकर प्रारम्भ किये जाते हैं। सामाजिक कलह पर नियन्त्रण वस्तुत: आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक अवनति को नियन्त्रण करता है, जिससे समाज व राज्य में न्याय की चेतना विकसित होती है। विषमता होते हुए भी राजनैतिक हिंसा पर नियन्त्रण संभव तो है लेकिन समाज का झुकाव विषमता कम करने के लिए होना चाहिए। 2 - तुलसी प्रज्ञा अंक 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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