Book Title: Tulsi Prajna 2002 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 25
________________ - No संदर्भ ग्रंथ सूची 1. सूयगडो 1/12/2 दीघनिकाय, सामञ्जफलसुत्त। से आयावाई, लांगावाई, कम्मावाई, किरियावाई-आचारांग 1/5 4. आचारांग भाष्य, पृ. 24 सूयगडो अध्ययन 6/4 भावा अपि हि केनचित् प्रकारेण नित्याः, केनचिदनित्याः । कथम् इति चेत् द्रव्यतो नित्या भावतोऽनित्या, द्रव्यं (उभयं) प्रति नित्यानित्याः। एवमन्यान्यपि द्रव्याणि यथा नित्यान्यनित्यानि च।-ए. 143 सूयगडो अध्ययन 6 टिप्पण 19 8. वही, अध्ययन 1/50 9. सूयगडो अध्ययन 1.50 का पाद टिप्पण 10. समवाओ, पइण्णसमवाओ सूत्र 90 11. सयगडो 1/1422 12. सूयगडो 1/14-22 पाद टिप्पण, पृ. 584 13. विभज्यवादो नाम भजनीयवादः । तत्र शंकिते भजनीयवाद एव वक्तव्यः - अहं तावदेवं मन्ये, अतः परमन्यत्रापि पुच्छेजसि अथवा विभज्यवादो नाम अनेकान्तवादः, स यत्र यत्र यथा युज्यते तथा तथा वक्तव्यः, तद्यथा-- नित्यानित्यत्वमस्तित्वं वा प्रतीत्यादि। --चूणि, पृ. 235 14. तथा विभज्यवादं पृथगर्थनिर्णयवादं व्यागृणीयात्, यदि वा विभज्यवादः स्याद्वादस्तं सर्वत्रास्खलितं लोकव्यवहाराविसंवादितया सर्वव्यापिनं स्वानुभवसिद्धं वदेत्, अथवा सम्यगर्थान् विभज्य पृथक् कृत्वा तद्वादं वदेत, तद्यथा-नित्यवादं द्रव्यार्थतया पर्यायार्थतया त्वनित्यवादं वदेत्, तथा स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैः सर्वेऽपि पदार्थाः सन्ति, परद्रव्यादिभिस्तु न सन्ति, तथा चोक्तम् - । सदेव सर्वं को नेच्छेत्स्वरूपादिचतुष्टयात् । असदेव विपर्यासान्न चेन्न व्यवतिष्ठते॥ 15. Early Buddhist Theory of Knowledge, K.N. Jayatilleke, P. 280 16. वहीं, पृ. 223 17. मज्झिमनिकाय 49/1, 2, पृ. 429 18. सूयगडो 13/1 अध्ययन। 19. सयुगडो 1/13-1 का पाद टिप्पण 20. सूयगडो 2 अध्ययन 5, टिप्पण 12, पृ. 306 21. सूयगडो 2-5/3 का टिप्पण 22. सूयगडो 2-5/30 23. वही, पृ. 307-308 24. वहीं, 2-5/31 25. सूयगड़ो 2, अध्ययन 5, टिप्पण 16 26. दर्शन और चिंतन में पं. सखलालजी द्वारा लिखित जैनधर्म का निबन्ध, पृ. 122-123 विभागाध्यक्ष, जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग जैन विश्भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं - 341 306 (राजस्थान) 22 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 116-117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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