Book Title: Tulsi Prajna 2002 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 57
________________ 31. पार्थिवी स्यादथाग्रेयी मारुती वारुणी । वही 3/22 तत्त्वभू : पंचमी चेति पिंडस्थे पंच धारणाः ॥ योगशास्त्र, 7/1 32. ज्ञानार्णव, सर्ग -37 33. तत्त्वानुशासनम्, लोक- 183/187 34. पार्थिवी - आग्नेयी - मारुति वारुणीति चतुर्था । वही, 4/16 35. शुद्धचैतन्यानुभवः समाधिः । विकल्पशून्यत्वेन चित्तस्य समाधानं वा। संतुलनं वा । मनोऽनुशासनम्, 4/27 से 28 36. सुनिर्णीतसुसिद्धान्तैः प्राणायामः प्रशस्यते । मुनिभिर्ध्यानसिद्धयर्थं स्थैयार्थं चान्तरात्मनः ॥ - ज्ञानार्णवक्र 29/1 37. स्थिरी भवन्ति चेतांसि प्राणायामावलम्बिनाम् । वही, 29 / 14 38. सर्वथा हिंसाऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहम्यो विरतिर्महाव्रतम् । मनोऽनुशासनम, 6/1 39. क्षमा मार्दव- आर्जव - शौच-सत्य-संयम--तपस्त्याग- आकिंचन्य - ब्रह्मचर्याणि श्रमणधर्मः ॥ वही 6/15 40. मनोऽनुशासनम्, 6/27 41. वही, 7/15 42. वही, 7/6-8 54 Jain Education International For Private & Personal Use Only अध्यक्ष-संस्कृत विभाग सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान ) । तुलसी प्रज्ञा अंक 116-117 www.jainelibrary.org

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