Book Title: Tulsi Prajna 2002 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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7. मिजा तारा बाला दीप्रा स्थिरा कान्ता प्रभा परा।
नामानि योगदृष्टिनां लक्षणं च निबोधतः ।।
---- योगदृष्टिसमुच्चयः -14 8. अध्यात्म भावना ध्यानं समता वृत्तिसंक्षयः ।
मोक्षण योजनाद्योगः, एष श्रेष्ठो यथोतरम् ॥
- योग बिन्दुः 31 9. योगसूत्र 1/1.2 10. मनोऽनुशासनम् 1/1.2 11. मनोऽनुशासनम्- आचार्य महाप्रज्ञ आमुख 12. वहीं 13. वही, आचार्य तुलसी, भूमिका 14. मनोऽनुशासनम् आचार्य तुलसी, भूमिका 15. मनोऽनुशासनम्, 1/2 16. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः । योगसूत्र- 1/2
17. मनोऽनुशासनम् 1/11 • 18. मृढ विक्षिप्त- यायायात शृिष्ट-सुलीन-निरुद्धभेदामनः घोढा
मनोऽनुशासनम् 2/1 19. इह विक्षिप्तं यायायातं शृिष्टं तथा सुलीनं च।
चंतश्चतः प्रकारं तज्झ चमत्कारकारी भवेत । 12/2 20. क्षिप्तं मूढं विक्षिप्तमेकाग्रं निरुद्धमिति चित्तभूमयः । योगसूत्र, व्यासभाष्य 1/2
क्षिप्तं मूढं विक्षिप्तं एकाग्रं निरुद्धं चित्तस्य भूमयः चित्तस्य अवस्थां विशेषाः । भोजवृत्ति 1/2 21. अभ्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोधः । योगसूत्र- /12 22. ज्ञान वैराग्यजूभ्यां नित्यमुत्पथवर्तिनः ।
त्रितचित्तंन श्क्यन्ते धर्तुमिन्दियवाजिनः॥ - तत्त्वानुशासनम्-शोक, 77 ज्ञान वैराग्याभ्यां तन्निरोधः। मनोऽनुशासनम-2/16 श्रद्धाप्रकर्पण। शिथिलीकरणे न च। संकल्पनिरोधेन। ध्यानेन च।
गुरुपदेश:प्रयत्नबाहुल्याभ्यां तदुपलब्धिः । वही, 2/17 से 21 सूत्र 24. एकाग्रे मनः सन्निवेशनं योगनिरोधी वा ध्यानम्। वही, 3/1 25. ऊनोर्दारका- रसपरित्यागोपवास- स्थान मौन प्रतिसंलीनता स्वध्याय- भावना व्युत्सर्गास्तत् सामग्रयम्।
वही, 3/2 26. औपपातिकसूत्र, बाह्य तप अधिकार तथा व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र, 25/7/7 27. मनोऽनुशासनम्, 3/13 28. अनित्य-अशरण-भव-एकत्व-अन्यत्व-अशैच आस्रव-संवर-निर्जरा-धर्म-लोक-संस्थान-बोधिदुलर्भता।
वही, 3/19 29. मैत्री- प्रमोद-कारुण्य मध्यस्थताश्च। वही, 3/20 30. शरीर-गण-उपधि-भक्तपात कषायाणां विसर्जनं व्यत्सर्गः।
तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-सितम्बर, 2002 0
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