Book Title: Tulsi Prajna 2002 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 76
________________ संस्कृत जैन स्तोत्र काव्य --- प्रकाश वर्मा (सोनी) भारतीय वाङ्मय में स्तोत्र-स्तवन की धारा अनादिकाल से चली आ रही है। इनका मूल ऋग्वेद में है जिसमें विभिन्न देवी-देवताओं की स्तुतियों में अनेक सूक्त मिलते हैं । वैदिक कवियों की स्तुतियां विश्वमानव की स्तुतियां हैं जिनमें विश्वकल्याण और मानवीय उत्थान से प्रेरित होकर विविध देवों का आह्वान किया गया है। जैसे अग्नि, इन्द्र. वरूण, हिरण्यगर्भ. उषा आदि में सुरक्षित सूक्त स्तवन ही है। यजुर्वेद की वाजसनेयी संहिता 41वां अध्याय ऋग्वेद का पुरुष सूक्त है। यह स्तुति की दृष्टि से महनीय है । यजुर्वेद का अंतिम अध्याय ईशावास्योपनिषद् है । इसमें परम प्रभु की सर्वव्यापकता का प्रतिपादन किया गया है। आठवें मंत्र में प्रभु के निर्गुण और सगुण दोनों रूपों का प्रतिपादन हुआ है। सामवेद को गेय स्तोत्रों का संकलन कह सकते हैं। ऋग्वेदिक ऋचाओं का इसमें संग्रह है। ऋक् मंत्रों के ऊपर गाए जाने वाले भाव ही साम शब्द के वाच्य हैं। यज्ञ के अवसर पर जिस देवता के लिए हवन किया जाता है, उसे बुलाने के लिए उद्गाता उचित स्वर में उस देवता का स्तुति मंत्र गाता है। सामवेद में 1875 ऋचाएं हैं, जिसमें केवल 99 ऋचाएं नवीन हैं। सामवैदिक स्तुतियां संगीत की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं । इसमें दो गान हैं - पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक । अथर्ववेद का पृथ्वीसूक्त एक राष्ट्रीय स्तोत्र है। ब्राह्मणों तथा उपनिषदों में भी इसके प्रयोग मिलते हैं। निरूक्त में अनेक स्थलों पर स्तुति शब्द का विनियोग हुआ है। वहीं पर स्तुति अर्थ में 'संस्तव' शब्द का भी प्रयोग किया गया है। आदिकाव्य रामायण में अनेक भक्तों द्वारा अपने उपास्य के प्रति स्तोत्र समर्पित किए गए हैं। विश्वकोश महाभारत में विभिन्न प्रकार के भक्त अपनेअपने उपास्य के चरणों में स्तुत्यांजलि समर्पित करते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में स्तुति का प्रयोग मिलता है तथा पुराणों में अनेक स्थलों पर यह शब्द उपलब्ध होता है। महर्षि वाल्मीकि एवं लोकसंग्रही व्यास के पश्चात् महाकाव्यों में कविताकामिनीविलासकविकुलगुरु महाकवि कालिदास अपनी काव्यप्रतिभा तथा कल्पनाचातुरी के लिए प्रख्यात हैं। विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य रघुवंश तथा प्रख्यात नाटक तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-सितम्बर, 2002 - - 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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