Book Title: Tulsi Prajna 2002 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 42
________________ अपभ्रंश के कवियों ने इन्हीं में से किसी परम्परा को लेकर राम कथा रची। स्वयंभू ने विमलसूरि के परम चरिय की और पुष्पदन्त ने गुणभद्र के उत्तर पुराण की परंपरा का अपने पुराणों में अनुगमन किया है। चरित ग्रंथों में किसी तीर्थंकर या महापुरुष के चरित्र का वर्णन मिलता है। जैसे जसहर चरिउ, पासणाह चरिउ, वड्ढमाण चरिउ, णेमिणाह चरिउ इत्यादि । इन 63 महापुरुषों के अतिरिक्त भी अन्य धार्मिक पुरुषों के जीवन-चरित्र से संबद्ध चरित ग्रंथ लिखे गये। जैसे पउमसिरी चरिउ (वि. 1910) भविसयत्त चरिउ, सुदसण चरिउ (वि. 1100) इत्यादि। इनके अतिरिक्त अपभ्रंश साहित्य में अनेक कथात्मक ग्रंथ भी मिलते हैं। अपभ्रंश साहित्य के कवियों का लक्ष्य साधारण के हृदय तक पहुँच कर उनको सदाचार की दृष्टि से ऊँचा उठाना था। जैनाचार्यों ने शिक्षित और पंडित वर्ग के लिए ही न लिखकर अशिक्षित और साधारण वर्ग के लिए भी लिखा। जनसाधारण को प्रभावित करने के लिए कथात्मक साहित्य से बढ़कर अच्छा और कोई साधन नहीं। यही कारण है कि पुराण चरितादि सभी ग्रंथ अनेक कथाओं और अवान्तर कथाओं से ओतप्रोत हैं। धार्मिक विषय का प्रतिपादन भी कथाओं से समन्वित ग्रंथों द्वारा किया गया है। श्रीचन्द्र का लिखा हुआ कथाकोष अनेक धार्मिक और उपदेशप्रद कथाओं का भंडार है। अमरकीर्ति द्वारा रचित छक्कमोवएस (षड्कर्मोपदेश) में कवि ने गृहस्थों को देव-पूजा, गुरुसेवा, शास्त्राभ्यास, संगम, तप और दान इन षट्कर्मों के पालन का उपदेश अनेक सुन्दर कथाओं द्वारा दिया है। इस प्रकार के कथा-ग्रंथों के अतिरिक्त भविसयत्त कहा, पज्जुण्ह कहा, स्थूलिभद्र कथा आदि स्वतंत्र कथा-ग्रंथ भी लिखे गये। कथायें किसी प्रसिद्ध पुरुष के चरित वर्णन के अतिरिक्त अनेक व्रतादि के माहात्म्य को प्रदर्शित करने के लिए भी लिखी गईं। जैनियों के लिखे चरिउ ग्रंथों में किसी महापुरुष का चरित अंकित होता है। इन ग्रंथों को कवियों ने रासक नहीं कहा। यद्यपि रासकग्रंथों में भी चरित वर्णन मिलता है, जैसे पृथ्वीराज रासो विरचरिउ काव्य तथा कथात्मक ग्रंथ प्रायः धर्म के आवरण से आवृत्त हैं। अधिकांश चरित्त काव्य प्रेमाख्यान या प्रेमकथापरक काव्य हैं। इनमें वर्णित प्रेमकथाएं या तो उस काल में प्रचलित थीं या इन्हें प्रचलित कथाओं के आधार पर कवियों ने स्वयं अपनी कल्पना से एक नया रूप दे डाला। जो भी हो, इन सुन्दर और सरस प्रेमकथाओं को उपदेश, नीति और धर्मतत्त्वों से मिश्रित कर कवियों ने धर्मकथा बना डाला। जैनाचार्यों द्वारा प्राकृत में लिखित समराइच्च कहा और वसुदेवहिण्डि जैसी आदर्श धर्मकथाओं की परम्परा इन अपभ्रंश के चरित काव्यों में चलती हुई प्रतीत होती हैं । इन विविध चरित काव्यों में वर्णित प्रेमकथा में प्रेम का आरंभ प्राय: समान रूप से ही होता है। ___ नायक और नायिका के सम्मिलन में कुछ प्रयत्न नायक की और से भी होता है। अनेक नायकों को सिंहल की यात्रा करनी पड़ती है और अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। प्रेम कथा में प्रतिनायक की उपस्थिति भी अनेक चरित ग्रंथों में मिलती है। प्रतिनायक की कल्पना नायक तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-सितम्बर, 2002 - 039 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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