Book Title: Tulsi Prajna 2002 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 40
________________ रूप से अधिक आदृत हुईं। विमलसूरि के पद्मचरिय का संस्कृत रूपान्तरण रविषेणाचार्य ने पद्मचरित नाम से किया। विमलसूरि की कथा में रावण का चरित्र उदात्त और उज्ज्वल अंकित किया गया है। इसमें रावण सौम्याकार, सौजन्य, दया, क्षमा, धर्मभीरूत्व, गांभीर्य आदि सद्गुणों से युक्त एक श्रेष्ठ पुरुष और महात्मा चित्रित किया गया है। विमलसूरि की परम्परा के अनुसार रामकथा का स्वरूप इस प्रकार का है - राजा रत्नश्रवा और केकसी की चार संतान हुई रावण, कुम्भकर्ण, चन्द्रनखा और विभीषण। जब रत्न श्रवा ने प्रथम बार नन्हें पुत्र रावण को देखा तो उसके गले में एक माला पड़ी हुई थी। इस माला में बच्चे के दस सिर दिखाई दिये, इसलिए पिता ने उसका नाम दशानन या दशग्रीव रखा। विमलसूरि ने इन्द्र, यम, वरुण आदि को देवता न मानकर राजा माना है। हनुमान ने रावण की ओर से वरुण के विरुद्ध युद्ध करके चन्द्रनखा की पुत्री अनंगकुसुमा से विवाह किया। खरदूषण किसी विद्याधरवंश का राजकुमार था, रावण का भाई नहीं। उसका रावण की बहिन चन्द्रनखा से विवाह हुआ। इनके पुत्र का नाम शम्बूका था। पउमचरिय में बतलाया गया है कि राजा दशरथ की-कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी और सुप्रभा नामक चार रानियों से क्रमशः राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न नामक पुत्र उत्पन्न हुए। राजा जनक की विदेहा नामक रानी से एक पुत्री सीता और एक पुत्र भामंडल उत्पन्न हुए। सीता-स्वयंवर, कैकेयी का वर मांगना आदि प्रसंग वाल्मीकि रामायण के अनुसार ही हैं किन्तु वनवास का अंश नितान्त भिन्न हैं। विमलसूरि के अनुसार सीताहरण का कारण, सूयंहास खड़ग की प्राप्ति के लिए तपस्या करते हुए शम्बूक का लक्ष्मण द्वारा भूल से मारा जाना था। शम्बूक शूद्र न होकर चन्द्रनखा तथा खरदूषण का पुत्र था। रावण यह समाचार सुन वहाँ पहुँचा और सीता को देखकर उस पर आसक्त हो गया। सीताहरण के समय लक्ष्मण जंगल में थे और राम सीता के पास पर्णकुटी में । लक्ष्मण ने राम को बुलाने के लिए सिंहनाद का संकेत बताया था। रावण ने लक्ष्मण के समान सिंहनाद किया, जिसे लक्ष्मण का सिंहनाद समझकर राम व्याकुल हो सीता को जटायु की रक्षा में छोड़ वहाँ से चल पड़े। पीछे से रावण ने सीताहरण कर लिया। रामायण के युद्धकांड की घटनाएँ भी पउमचरियं में कुछ परिवर्तित हैं। समुद्र एक राजा का नाम था, जिसके साथ नील ने घोर युद्ध किया और उसे हराया। जब लक्ष्मण को शक्ति लगी तो द्रोणमेघ की कन्या विशल्या की चिकित्सा से वह अच्छा हुआ और लक्ष्मण ने विशल्या के साथ विवाह कर लिया। अन्त में लक्ष्मण ने रावण का संहार किया। __ अयोध्या में लौटकर राम अपनी आठ हजार और लक्ष्मण अपनी तेरह हजार पत्नियों के साथ राज्य करने लगे। लोकापवाद के कारण सीता-निर्वासन और सीता की अग्नि परीक्षा का प्रसंग वाल्मीकि रामायण के अनुसार ही है। अग्नि-परीक्षा में सफल होकर सीता ने एक आर्यिका के पास जैनधर्म में दीक्षा ले ली और बाद में स्वर्ग सिधारी। तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-सितम्बर, 2002 - - 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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