Book Title: Tulsi Prajna 2002 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 49
________________ 6. भगवई, विआहपण्णत्ती (खण्ड-1), संपादक, भाष्यकार-आचार्य महाप्रज्ञ, भूमिका, पृ. 16, प्रका. .. जैनविश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय), लाडनूं, 1994 7. 'पेज वा दोसो वा कम्मि कसायम्मि कस्स व णयस्स। दुट्ठो व कम्मि दव्वे पियायदे को कहिं वा वि॥'-कसायपाहुड, गाथा-21, पृ. 34 8. एदिस्से गाहाए पुरिमद्धस्स विहासा कायव्वा।- कसायपाहुडसुत्त, गाथा-21 पर यतिवृषभाचार्य की चूर्णि, सूत्र संख्या 88, पृ. 34 9. णयदो णिप्पण्णं कसायपाहुडं। वही, चूर्णिसूत्र-22, पृ. 16 वेदणात्ति। तत्थ इमाणि वेयणाए सोलसं अणियोगददाराणिणादव्वाणि भवंति वेदणणिक्खेवे वेदणणयविभासणाए..............। षट्खण्डागम, चतुर्थ वेदनाखंड, द्वितीय वेदना अनुयोगद्वार, संपादिका ब्र. समति बाई शहा, प्रकाशक-श्रुतभंडार ग्रंथप्रकाशन समिति, फलटण (सातारा), 1965 11. देखें सन्दर्भ संख्या-3 12. से केणटेणं भंते, एवं वुच्चइ नेरतिया सिय सासया, सिस असासया? गोयमा, अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए सासया, वोच्छित्तिणयट्टयाए, असासया।- भगवती (द्वितीय खण्ड), सातवां शतक, उद्देशक-3, पृ. 146 13. गोयमा। एत्थ दो नया भवंति । तं जहा-नेच्छयिनए या वावहारियनए य । वावहारियनयस्स गोड्डे फाणियगुले, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे अट्ठफासे पन्नत्ते । --- भगवती (तृतीय खण्ड), अठारहवां शतक, उद्देशक-6, पृ. 704 14. तत्थ पढमं अज्झयणं सामाइयं । तस्स पं इमे चत्तारि अणुओगदारा भवति, तं जहा- 1. उपकम्मे, 2. निक्खेवे, 3. अणुगमे, 4. नए।– अणुओगदाराइं. तीसरा प्रकरण, सूत्र-75. पृ. 63 15. वही, टिप्पण, पृ. 32 नाप्रमाणं प्रमाणं वा नयो ज्ञानात्मको मतः । स्यात्प्रमाणेकदेशस्तु सर्वथाप्यविरोधतः ।। ----नय विवरण, आचार्य विद्यानन्द (माइल्लधवलकत णयचक्को. संपा. पं. कैलाशचन्द का परिशिष्ट). भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, द्वितीय संस्करण, 1999 17. से किं तं नयप्पमाण? नयप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा पत्थगदिटुंतेणं वसहिदिटुंतेणं पएसदिटुंतेणं। अणुओगदाराई, 11 प्रकरण, सूत्र-554, पृ. 299-300 18. 'णेगेहिं माणेहिं मिणइ त्ति णेगमस्स य निरूत्ती' - वही, नयनिरूपण, गा9 136, पृ. 467 19. 'संगहियपिंडियत्थं संगहवयणं समासओ बिंति ।'– वही, गा. 137, पृ. 467 20. 'वच्चइ विणिच्छियत्थं ववहारो सव्वदव्वेसुं।'- वही, गा. 137, पृ. 467 21. 'पच्चुप्पन्नग्गाही उज्जुसुओ णयविही मुणेयव्वो।'-वही. गा. 138, पृ. 467 22. 'इच्छइ विसेसियतरं पच्चुप्पण्णं णओ सद्दो॥'- वही, गा. 138, पृ. 467 23. 'वत्थुओ संकमणं होइ अवत्थु णये समभिरूढ़े' -वही, गा. 139, पृ. 468 24. 'वंजण-अत्थ-तदुभयं एवंभूओ विसेसेइ ।'- वही, गा. 139, पृ. 468 25. देखें-विशेषावश्यक भाष्य, भाग-2, गाथा-2182 से 2185 तक, पृ. 448, प्रकाशक दिव्यदर्शन ट्रस्ट, मुम्बई, वि.सं. 2039 26. संतपरूवणदाए दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य। - षट्खण्डागम, 1/1/8, शोलापुर, 1965, पृ. 5 27. देखें-संदर्भ-13 व्याख्याता ---जैन दर्शन, दर्शन संकाय श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली-110016 46 - तुलसी प्रज्ञा अंक 116-117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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