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के चरित्र को उज्ज्वल करने के लिए ही की जाती है किन्तु अपभ्रंश काव्यों में प्रतिनायक का चरित्रपूर्ण रूप से विकसित हुआ नहीं दिखाई देता। नायक को नायिका की प्राप्ति के अनन्तर भी अनेक बार संकट भोगने पड़ते हैं। इसका कारण पूर्व जन्म के कर्मों का विपाक होता है।
इन सब चरित काव्यों में आश्चर्य तत्त्व अथवा चमत्कार बहलता से दिखाई देते हैं। विद्याधर, यक्ष, गंधर्व, देव आदि समय-समय पर प्रकट होकर पात्रों की सहायता करते रहते हैं। धर्म की विजय के लिए कवि ने इन्हीं तत्त्वों का आश्रय लिया है। विद्याधर, देव आदि का समय पड़ने पर उपस्थिति का संबंध पूर्व जन्म के कर्मों से बतलाकर उस अस्वाभाविकता को दूर करने का प्रयत्न किया गया है। तंत्र-मंत्र में विश्वास, मुनियों की वाणी में श्रद्धा, स्वप्रफल और शकुनों में विश्वास करने वाले व्यक्तियों के प्रसंग भी इन प्रबंध काव्यों में दिखाई देते हैं।
अपभ्रंश साहित्य में धर्म-निरपेक्ष लौकिक-कथानक को लेकर लिखे गये प्रबंधकाव्यों की संख्या अति स्वरूप उपलब्ध हुई है। विद्यापति की कीर्तिलता में राजा के चरित का वर्णन है । वह ऐतिहासिक प्रबन्ध-काव्य कहा जा सकता है। अब्दुल रहमान के सन्देशरासक में एक विरहिणी का अपने प्रियतम के प्रति संदेश है। यह सन्देश काव्य ही पूर्ण रूप से लौकिक प्रबंध-काव्य है। इस प्रकार के अन्य प्रबंध काव्य भी लिखे गये होंगे, जिनका जैन भण्डारों के धार्मिक ग्रंथ समुदाय के साथ प्रवेश न हो सका होगा और अतएव वे सुरक्षित न रह सके।
कथात्मक ग्रंथों के अतिरिक्त अपभ्रंश में जीवन:करण संलाप कथा नामक एक रूपक-काव्य भी लिखा गया। वह सौमप्रभाचार्यकृत कुमारपाल प्रतिबोध नामक प्राकृत ग्रंथ का अंश है। इसमें जीव, मन, इन्द्रियों आदि को पात्र का रूप देकर उपस्थित किया गया है। इसी प्रकार हरिदेवकृत मदन पराजय भी इसी प्रकार का एक रूपक-काव्य है। इसमें कवि ने काम, मोह, अहंकार, अज्ञान, रागद्वेष आदि भावों को पात्रों का रूप देकर प्रतीक रूपक काव्य की रचना की है।
अपभ्रंश साहित्य में कुछ रास ग्रंथ भी उपलब्ध हुए हैं। पृथ्वीराजरासो (वि. 1213वीं शताब्दी) मूल रूप में जिसके अपभ्रंश में होने की कल्पना दृढ़ होती जा रही है और सन्देश रास जो एक सन्देश काव्य है, को छोड़कर प्रायः सभी उपलब्ध रास ग्रंथों का विषय धार्मिक ही है। जिनदत्तसूरिकृत उपदेश रसायन (वि. 1132-1210वीं शताब्दी) रास में धार्मिकों के कृत्यों का उल्लेख किया है और अन्तरंगरास नामक दो अन्य अपभ्रंश रासग्रंथों का भी उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त जंबू स्वामिरास (वि. 1266 शताब्दी वि. 1510 से पूर्व) समरारास, सकेरेवंतगिरिरास (वि. 1200वीं शताब्दी) आदि कुछ प्राचीन गुजराती से प्रभावित अपभ्रंशरास भी लिखे गये। इन सबमें राजयश के स्थान पर धार्मिकता का अंश है। रास ग्रंथों में धार्मिक पुरुष के चरित वर्णन के अतिरिक्त गुरु-स्तुति, धार्मिक उपदेश, व्रत, दान संबंधी कथाओं का उल्लेख भी मिलता है।
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- तुलसी प्रज्ञा अंक 116-117
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