Book Title: Tulsi Prajna 1996 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ पर्यावरण सभी जीव एवं निर्जीव पदाथों का संकलन है, उस की आवश्यकता सभी के लिए है। पर्यावरण संतुलन ब्रह्माण्ड में ऊर्जा-संतुलन के लिए भी जरूरी है। पर्यावरण में ऊर्जा असंतुलन का मतलब इस पृथ्वी एवं ब्रह्मांड का सर्वनाश है । आज के जीवन में भौतिक इच्छाओं की वृद्धि पर्यावरण में ऊर्जा संतुलन बिगाड़ रही है इसलिये अब हमें अपनी जीवन-पद्धितियों एवं भौतिक इच्छाओं में बदलाव लाना जरूरी है। ___ बढ़ती हुई भौतिक इच्छाओं को रोकने में जैन धर्म का बहुत बड़ा योगदान है । बढ़ती हुयी भौतिक वस्तुओं के प्रति लालसा एवं अपूर्ण शिक्षा ने प्रदूषित पर्यावरण को जन्म दिया है। शिक्षा द्वारा आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति के हिस्सेदार एवं रक्षक बनाने के लिए वातावरण बनाना होगा। शिक्षा पर्यावरण से एवं शिक्षा, पर्यावरण के बारे में होनी चाहिये । शिक्षा खासकर पर्यावरणीय शिक्षा मैं वैज्ञानिक, सामाजिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक यहां तक कि धार्मिक सिद्धांतों का समावेश होना जरूरी है । जैन धर्म में इस प्रकार की शिक्षा का समावेश काफी हद तक मिलता है। जो संसार को दुःखों से निकालकर सुख में पहुंचा दे वह धर्म है । धर्म आत्मा का स्वभाव है । धर्म मानव को जीवित रखने वाला तरीका है। धर्म विश्व को सुरक्षित रखने का साधन है। जैन धर्म आधुनिक विज्ञान तथा प्रकृति के नियमों से पूर्ण रूप से मेल खाता है। यह आत्मवादी है, पुरुषार्थवादी है, समतावादी है एवं आत्मजय की बात करता है। इसलिए इसे किसी विशेष जाति, क्षेत्र काल अथवा वर्ग की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। जहां जहां आत्मा का निवास है वहां वहां इस धर्म की पहुंच है । आत्मा के चारों तरफ आठ कोष हैं। उसके चारों तरफ पौद्गलिक संरचना है जो आत्मा को घेरे में बांधे है। आत्मा का पहला घेरा है कर्म जो उसे प्रभावित करता रहता है। इसलिए अपने कर्मों को सुधारें। भौतिक शरीर के अंदर आत्मा से परिचय करना, आत्मा को शक्तिशाली ज्ञान, दर्शन, बल से सम्पन्न बनाना और उसकी अनन्त शक्तियों को बढ़ाना--- यह जैन धर्म की शिक्षा है। इस प्रकार जैन धर्म मानव धर्म अथवा आत्मा का धर्म है । आत्म-धर्म है जो सभी प्राणियों के संरक्षण की बात करता जैन शब्द 'जिन' से बना है जिसका अर्थ हैं अपने आप की इच्छाओं को जीतना, इन्द्रियों को काबू में रखना जिससे जीवन प्रकृति से समन्वित होकर चले । धर्म आदमी को सही जीवन जीना सिखाने के साथ-साथ आत्मा, परमात्मा एवं मोक्ष की बात करता है । सही जीवन जीने के लिए क्या खायें, कैसे खायें, क्या एवं कैसे बोलें, कैसे एक दूसरे के साथ रहें आदि व्यावहारिक बातों का ज्ञान आवश्यक है। सही जीवन के लिए सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र होना जरूरी है । धर्मशील बनने के पांच मूल सिद्धांत हैं जो सभी धर्मो में भी मान्य हैं । अहिंसा, सत्य, अस्तेय (अचौर्य) ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह । परिशुद्ध आत्मा को ही परमात्मा मानना जैन धर्म की मान्यता है । प्रत्येक प्राणी में आत्मा को शुद्ध करके परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है। जैन धर्म परम वैज्ञानिक धर्म है । प्राकृतिक प्रदूषण को रोकने के लिये जैन धर्म के तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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