Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 5
________________ चतुर्थं पर्व में सात सर्ग हैं पहले सर्ग में ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ, प्रथम बलदेव अचल, प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ, प्रथम प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव का चरित है। दूसरे सर्ग में बारहवें तीर्थकर वासुपूज्य एवं दूसरे-बलदेव विजय, द्विपृष्ठ वासुदेव, तारक प्रतिवासुदेव का चरित है। तीसरे सर्ग में तेरहवें तीर्थङ्कर विमलनाथ एवं तीसरे-भद्र बलदेव, स्वयम्भू वासुदेव, मेरक प्रतिवासूदेव का जीवन चरित है। चौथे सर्ग में चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथ एवं चौथे--सुप्रभ बलदेव, पुरुषोत्तम वासुदेव, मधु प्रतिवासुदेव का चरित है। पाँचवें सर्ग में पन्द्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ एवं पाँचवें-सुदर्शन वलदेव, पुरुषसिंह वासुदेव, निशुम्भ प्रतिवासुदेव का वर्णन है । छठे सर्ग में तृतीय चक्रवर्ती मघवा का चरित है। सातवें सर्ग में चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार का जीवन चरित्र है। इस प्रकार चौथे पर्व में ५ तीर्थङ्करों, २ चक्रवतियों एवं पाँचपाँच बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेवों-कुल २२ महापुरुषों का जीवनचरित्र संकलित है। पूर्व में आचार्य शीलांक ने 'चउप्पन-महापुरुष-चरियं' नाम से इन ६३ महापुरुषों के जीवन का प्राकृत भाषा में प्रणयन किया था। शीलांक ने ९ प्रतिवासूदेवों की गणना स्वतन्त्र रूप से नहीं की, अतः ६३ के स्थान पर ५४ महापुरुषों की जीवनगाथा ही उसमें सम्मिलित थी। आचार्य हेमचन्द्र १२वीं शताब्दी के एक अनुपमेय सारस्वत पुत्र थे, कहें तो अत्युक्ति न होगी। इनकी लेखिनी से साहित्य की कोई भी विधा अछूती नहीं रही। व्याकरण, काव्य, कोष, अलंकार, छन्द-शास्त्र, न्याय, दर्शन, योग, स्तोत्र आदि प्रत्येक विधा पर अपनी स्वतन्त्र, मौलिक एवं चिन्तनपूर्ण लेखिनी का सफल प्रयोग इन्होंने किया। आचार्य हेमचन्द्र न केवल साहित्यकार ही थे; अपितु जैनधर्म के एक दिग्गज आचार्य भी थे। महावीर की वाणी के प्रचार-प्रसार में अहिंसा का सर्वत्र व्यापक सकारात्मक प्रयोग हो इस दृष्टि से वे चालुक्यवंशीय राजाओं के संम्पर्क में (आ)

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