Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 4
________________ प्रकाशकीय अप्रतिम प्रतिभाधारक, कलिकाल सर्वज्ञ, परमार्हत् कुमारपाल प्रतिबोधक, स्वनामधन्य श्री हेमचन्द्राचार्य रचित त्रिषष्टिशलाका - पुरुषचरित का तृतीय एवं चतुर्थ पर्व, भाग – ३ के रूप में प्राकृत भारती के पुष्प संख्या ७९ के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है । त्रिषष्टि अर्थात् तिरेसठ शलाका पुरुष अर्थात् सर्वोत्कृष्ट महापुरुष अथवा सृष्टि में उत्पन्न हुए या होने वाले जो सर्वश्रेष्ठ महापुरुष होते हैं वे शलाका पुरुष कहलाते हैं । इस कालचक्र के उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के आरकों में प्रत्येक काल में सर्वोच्च ६३ पुरुषों की गणना की गई है, की जाती थी और की जाती रहेगी । इसी नियमानुसार इस अवसर्पिणी में ६३ महापुरुष हुए हैं उनमें २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव और ९ बलदेवों की गणना की जाती है। इन्हीं ६३ महापुरुषों के जीवनचरितों का संकलन इस 'त्रिषष्टिशलाका-पुरुष चरित' के अन्तर्गत किया गया है । आचार्य हेमचन्द्र ने इसे १० पर्वों में विभक्त किया है जिनमें ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त ६३ महापुरुषों के जीवनचरित संगृहीत हैं । प्रथम पर्व में भगवान् ऋषभदेव एवं भरत चक्रवर्ती का एवं द्वितीय पर्व में द्वितीय तीर्थंकर भगवान् अजितनाथ एवं द्वितीय चक्रवर्ती सगर का सांगोपांग जीवन गुम्फित है । ये दोनों पर्व हिन्दी अनुवाद के साथ प्राकृत भारती के पुष्प ६२ एवं ७७ के रूप में प्राकृत भारती अकादमी द्वारा प्रकाशित किए जा चुके हैं । इस तृतीय भाग में पर्व ३ और ४ संयुक्त रूप से प्रकाशित किए जा रहे हैं । तृतीय पर्व में आठ सर्ग हैं जिनमें पहले सर्ग में भगवान संभवनाथ, दूसरे सर्ग में प्रभु अभिनन्दन, तीसरे सर्ग में विभु सुमतिनाथ, चौथे सर्ग में स्वामिन् पद्मप्रभ, पाँचवें सर्ग में जिनेन्द्र सुपार्श्वनाथ, छठे सर्ग में तीर्थपति चन्द्रप्रभ, सातवें सर्ग में भगवान् सुविधिनाथ एवं आठवें सर्ग में भगवान् शीतलनाथ का जीवन चरित है । इस प्रकार इस तीसरे पर्व में तीसरे तीर्थंकर से लेकर दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ के चरितों का समावेश हो गया है । ( अ )

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