Book Title: Tirthankar Bhagawan Mahavir 48 Chitro ka Samput
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Jain Sanskruti Kalakendra

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Page 13
________________ । तृतीय आवृत्तिके संबंधमें संक्षिप्त प्रास्ताविक ) - लेखक - आचार्य श्री यशोदेवसूरिजी जो चित्रसम्पुट पूरे संसार के जैन समाजमें और अजैन समाजमें भी व्यापक और विख्यात बना है, जिस चित्रराम्पुट का सर्वत्र जयजयकार हुआ है, समग्र जनता ने इस एक महान क्रान्तिकारी तथा शकवर्ती सम्पुट को अभूतपूर्व, बेजोड विशेषण देकर सम्मानित किया और देशविदेश में जो चित्रसम्पुट पर्याप्त ख्याति को प्राप्त हुआ है, वह सम्पुट कब, किस प्रकार तैयार हुआ. इस की विस्तृत जानकारी पहली आवृत्ति के निवेदन से ज्ञात कर लें । यहाँ तो तीसरी आवृति के साथ संबंध रखनेवाली अनिवार्य आवश्यक बाते प्रस्तुत की गई है। यह तीसरी आवृत्ति नये १३ चित्रों के जुड़ने से ४८ चित्रों की हो गई है। नये १३ चित्र नयनरम्य तथा आकर्षक बने हैं जिनसे पुराने ३५ चित्रों की शोभा में भी ये सहायक बनेगे । १३ चित्रों के क्रमांक २. ४. ९. १३, १७, २०, २६, ३८, ३९, ४१, ४२, ४३ और ४५ हैं। इस पुस्तक का सबसे अधिक आकर्षक अत्युपयोगी, बोधक एवं मर्मपूर्ण विभाग ८० रेखापट्टियों तथा १४४ प्रतीकों का परिचय हैं। पूर्व-प्रकाशित दो आवृत्तियों की अपेक्षा यह तीसरी आवृत्ति में क्या विशेषता है ? इसकी सूची १- नये १३ चित्र. २-१९ रेखापट्टिकाएँ, ३-३२ प्रतीक, ४-४८ चित्रों की तीनों भाषाओं में अनुक्रमणिका, ५ - सिध्दचक्र का रंगीन यन्त्र, ६ - ऋषिमण्डल का रंगीन यन्त्र, ७- तीर्थकर का आत्मा परमात्मा कैसे बनता है इसका उत्तम चित्रण, ८ - चौदह राजलोक आदि के भौगोलिक चार चित्र, ९ - अठारह पापस्थानक सूत्र, १० - जैनागमों की ब्राहीलिपि, ११ - जीवक्षमापना - सात लाख सूत्र, १२ - अशोकशालवृक्ष के चित्र, १३ - भारत का महावीरकालीन मानचित्र (नक्शा), १४ - कल्पसूत्र की पद्धति के ४०० वर्ष पुराणा चार चित्र (परिचयसहित) आदि विशेषताएँ इस तृतीय आवृत्ति में देखने को मिलेंगी। तृतीय आवृत्ति में अधिकांश भाग का लेखन फोटोकम्पोज से किया गया होनेसे बहुत आकर्षक बना है। द्वितीय आवृत्ति में १६४ पृष्ठ थे, तीसरी आवृत्ति में २२६ पृष्ठ हैं। नये १३ वित्रों में नं २.३८ और ४२व चित्र आदीश्वर भगवान की चित्र श्रेणी के हैं वे किन्हीं कारणों से इस आवृत्ति में प्रकट किये हैं। स्वतन्त्र सिर्फ महावीर के जीवनको यदि कोई चित्रित कराये तो इन तीन चित्रोंको छोड़कर बनवाये। समग्र तीसरी आवृत्ति का लेखन तीनों भाषाओं में मुद्रित करवाया गया है। चित्रकला के क्षेत्र में भावि आयोजन इसके पश्चात् अब २३ तीर्थकरों के चित्रों का एक ही सम्पुट तथा जैन साधु की दिनचर्या के ४० चित्रों का एक सम्पुट आदि अन्य कला के प्रकाशन तैयार हो रहे हैं। महान तथा पवित्र भूमि पर तीसरी आवृति के मुद्रण का प्रारंभ और पूर्णाहुति हुई, ऐसा यह ग्रन्थ तैयार करने में दम रथभाव से जाने। -अनजाने में शास्त्र अथवा परम्परा-विरुद्ध कुछ भी विधान अथवा उल्लेख हुआ हो, तो उसके लिये क्षमायाचना। SHORT INTRODUCTION TO THIRD EDITION The pictorial album circulated all over the world in Jain community was received with approbation everywhere and was universally adored with unprecedented and unique attributes. Detailed information as to when and how it was prepared should be known from the statement presented in the first edition. Here some salient details related to the third edition are presented. With the addition of 13 pictures the total number in the third edition has risen to 48 pictures. 13 new pictures have been eyecatching and attractive, enhancing the charm of the 35 earlier pictures. The index numbers of 13 pictures are 2, 4, 9, 13, 17, 20, 26, 38, 39, 41, 42, 43 and 45. Introduction to 80 strip-illustrations and 144 symbols is the most attractive and very useful section which enlightens and elucidates the inner meaning. NOTE ABOUT THE REMARKABLE FEATURES OF THE THIRD EDITION OVER THE FIRST TWO EDITIONS (1) 13 new pictures. (2) 19 outline strips. (3) 39 symbols, (4) index in three languages for 48 pictures, (5.6) multicolour Yantra of Siddhachakra and Rishi mandal. (7) outline delineation of how the Atma of Tirthankara becomes paramatma.(R) fourteen royal worlds, four geographical pictures of Jambudwipa etc. (9) 18 locations of sins, (10) Brahmi script of Jain Agamas, (11) JivaKshamapana, seven lakh aphorisms. (12) pictures of Ashoka, Shal trees. (13) map of India of the times of Mahavira, (14) four pictures of Kalpasutra style. All these and other remarkable features would be seen in this third edition. Pictures numbered 2, 38 and 42 though belonging to the picture-series of Adishver Bhagawan, being very attractive are published in this edition for the simple reason that they are charming Because of paucity of space the introduction in Hindi and English is given in extremely concise form. I apologise before shasanadeva if any statement or reference is made against scriptures or traditions, Jain Education interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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