Book Title: Tirthankar
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Tin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur

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Page 7
________________ समर्पण पूज्य पिता श्री सिंघई कुंवरसेन जी __ की पुण्य स्मृति में " जो मेरी बाल्यावस्था से ही अपने अद्भुत एवं आकर्षक व्यक्तित्व के कारण मेरे आदर्श बन गए थे, जिनके अनन्य अनुराग और आशीर्वाद, अनुकम्पा और औदार्य के कारण मुझे लौकिक झंझटों से मुक्त हो आत्मोत्थान करने वाली उज्ज्वल अभिलाषा के अनुसार जैन धर्म और संस्कृति की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिनकी जिनधर्म में प्रगाढ़ श्रद्धा थी और जिनका मन विषयों की ओर से विरक्त था, जो जिनागम के मार्मिक ज्ञाता और आत्मोन्मुख श्रावक थे, जिनका अंतःकरण अपूर्व वात्सल्यभाव समलंकृत था, जिन्हें तीर्थंकर भगवान की पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में महान् हर्ष का अनुभव हुआ करता था" . चिरकृतज्ञ सुमेरुचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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