Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
[ २३ ] प्रवृत्त किया है। श्री शान्तिवीर गुरुकुल जोबनेर को स्थायित्व प्रदान करने के लिये आपकी प्रेरणा से श्री दि० जैन महावीर चैत्यालय का नवीन निर्माण हुआ है और वेदी प्रतिष्ठा भी हुई है। जनधन एवं आवागमन आदि अन्य साधन विहीन अलयादी ग्राम स्थित जिन मन्दिर का जीर्णोद्धार, मवीन जिनबिम्ब की रचना, नवीन वेदी का निर्माण एवं वेदी प्रतिष्ठा आपके ही सद्प्रयत्नों का फल है । श्री दि. जैन धर्मशाला टोडारायसिंह का नवीनीकरण एवं अशोकनगर, उदयपुर में श्री शिवसागर सरस्वती भवन का निर्माण आपके मार्गदर्शन का ही सुपरिणाम है।
श्री श्र० सूरजबाई मु० ड्योढी ( जयपुर ) की क्षुल्लिका दीक्षा, ब्रा मनफूलबाई ( टोडा रायसिंह ) को आठवीं प्रतिमा एवं श्री कजोड़ीमलजी कामदार ( जोबनेर ) को दूसरी प्रतिमा के व्रत आपके करकमलों से प्रदान किये गये हैं।
शास्त्रसमुद्र का पालोड़न करने वाली पूज्य माताजी की आगम में अटूट आस्था है । क्षुद्र भौतिक स्वार्थो के लिये सिद्धान्तों को अपने अनुकूल तोडमोड़ कर प्रस्तुत करने वाले आपको दृष्टि में अक्षम्य हैं । सज्जातित्व में आपकी पूर्ण निष्ठा है। विधवा विवाह और विजातीय विवाह आपकी दृष्टि में कथमपि शास्त्रसम्मत नहीं है । आचार्य सोमदेव की इस उक्ति का पाप पूर्ण समर्थन करती है
स्वकीया: परकीयाः वा मर्यादालोपिनो नराः ।
नहि माननीयं तेषां तपो वा श्रुतमेव च ।। अर्थात् स्वजन से या परजन से, तपस्वी हो या विद्वान् हो किन्तु यदि वह मर्यादानों का लोप करने वाला है तो उसका कहना भी नहीं मानना चाहिये । (धर्मोद्योत प्रश्नोत्तर माला तृतीय संस्करण पृ० ६६ से उद्धृत )
पूज्य माताजी स्पष्ट और निर्भीक धर्मोपदेशिका हैं । जनानुरंजन की क्षुद्रवृत्ति को आप अपने पास फटकने भी नहीं देती । अपनी चर्या में 'वज्रादपि कठोराणि' हैं तो दूसरों को धर्ममार्ग में लगाने के लिये 'मृदुनि कुसुमादपि' । ज्ञानपिपासु माताजी सतत ज्ञानाराधना में संलग्न रहती हैं और तदनुसार आत्म-परिष्कार में प्रापकी प्रवृत्ति चलती है। सिद्धान्तसारदीपक' की प्रस्तावना में परमादरणीय पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य ने लिखा है--"माताजी की अभीक्षण ज्ञानाराधना और उसके फलस्वरूप प्रकट हुए क्षयोपशम के विषय में क्या लिग्नू ? अल्पवय में प्राप्त वैधव्य का अपार दुःख सहन करते हुए भी इन्होंने जो वैदुष्य प्राप्त किया है वह साधारण महिला के साहस की बात नहीं है । ...ये सागर के महिलाश्रम में पढ़ती थीं। मैं धर्मशास्त्र और संस्कृत का अध्ययन कराने प्रातः काल ५ बजे जाता था । एक दिन गृहप्रबन्धिका ने मुझसे कहा कि रात में निश्चित समय के बाद आश्रम की ओर से मिलने वाली लाइट की सुविधा जब बन्द हो जाती है तब ये खाने के धृत का दीपक जलाकर चुप चाप पढ़ती रहती हैं और भोजन घृतहीन कर लेती हैं । गृहप्रबन्धिका के मुख से इनकी अध्ययनशीलता