Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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[ २२ ] अस्वस्थ रहते हुए भी वे धर्मग्रन्थों के पठन में प्रवृत्त रहीं। प्रापने चारों ही अनुयोगों के निम्नलिखित ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया है । करणानुयोग-सिद्धान्तशास्त्र धबल (१६ खण्ड), महाधयल, ( दो खण्डों का अध्ययन हो चुका है, तीसरा खण्ड चालू है ।) ध्यानुयोग-समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, इष्टोपदेश, समाधिशतक, मात्मानुशासन, वृहद्रव्यसंग्रह । न्यायशास्त्रों में न्यायदीपिका, परीक्षामुख, प्रमेयरत्नमाला । ज्याकरण में कातन्त्ररूपमाला, कलापब्याकरण, जैनेन्द्र लघुत्ति, शब्दार्णवचन्द्रिका । चरणानुयोग-रत्नकरण्ड श्रावकाचार, अनगार धर्मामृत, मूलाराधना, प्राचारसार, उपासकाध्ययन । प्रयमानुयोग-सम्यक्त्व कौमुदी, क्षत्रचूड़ामणि, गद्यचिन्तामणि, जीवन्धरचम्पू, उत्तरपुराण, हरिवंशपुराण, पद्मपुराण आदि ।" ( त्रिलोकसार : आद्य पृ०६)
इसप्रकार पूज्य माताजी ने इस अगाध आगम वारिधि का प्रवगाहन कर अपने ज्ञान को प्रौढ़ बनाया है और उसका फल अब हमें साहित्यसृजन के रूप में उनसे अनवरत प्राप्त हो रहा है। आज तो जैसे 'जिनवारणी की सेवा' ही उनका व्रत हो गया है। उन्होंने प्राचार्यों द्वारा प्रणीत करणानुयोग के विशाल काय प्राकृत संस्कृत ग्रंथों की सचित्र सरल सुबोध भाषा टीकायें लिखी हैं, साथ ही सामान्य जनोपयोगी अनेक छोटी बड़ी रचनाओं का भी प्रकाशन किया है। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य की सूची इसप्रकार हैभाषा टोकाएं-१. श्रीमद् सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य विरचित त्रिलोकसार की सचित्र
हिन्दी टीका २. भट्टारक सकलकीति विरचित सिद्धान्तसार दीपक की हिन्दी टीका ३. परम पूज्य यतिवृषभाचार्य विरचित तिलोयपणती की सचित्र हिन्दी
टीका ( तीन खण्डों में ) मौलिक रचनाएँ-१. श्रुतनिकुञ्ज के किंचित् प्रसून ( व्यवहार रत्नत्रय की उपयोगिता)
२. गुरु गौरत्र ३. श्रावक सोपान और बारह भावना
४. धर्म प्रवेशिका प्रश्नोत्तर माला ५. धर्मोद्योत प्रश्नोत्तर माला संकलन-१. शिवसागर स्मारिका २. आत्मप्रसून सम्पादन–१. समाधिदीपक २. श्रमणचर्या ३. दीपावली पूजन विधि
४. श्रावक सुमन संचय ५. स्तोत्रसंग्रह ६. श्रावकसोपान
७. आयिका आयिका है, श्राविका नहीं ८. संस्कार ज्योति ९. छहढाला अब तक आपने पपौरा, श्रीमहावीरजी, कोटा, उदयपुर, प्रतापगढ़, टोडारायसिंह, भीण्डर, अजमेर, निवाई, किशनगढ़ रेनवाल, सवाईमाधोपुर, सीकर, चूण, भीलवाड़ा आदि स्थानों पर वर्षायोग सम्पन्न किये हैं । टोडारायसिंह, उदयपुर, रेनवाल, निवाई में आपके क्रमशः दो, पांच, दो और तीन बार चातुर्मास हो चुके हैं। सर्वत्र आपने महती धर्मप्रभावना की है और श्रावकों को सन्मार्ग में