Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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* प्रकाशकीय निवेदन * 'श्रीतत्त्वार्थाधिगम-सूत्रम्' इस नाम से सुप्रसिद्ध महान् ग्रन्थ आज भी जैनदर्शन के अद्वितीय आगमशास्त्र के सार रूप है, जिसके रचयिता पूर्वधर-महर्षि-परमपूज्य वाचकप्रवर श्रीउमास्वाति जी महाराज हैं।
__ यह एक ही ग्रन्थ सांगोपांग श्री अर्हद्दर्शन-जैनदर्शन के जीवादि नव तत्त्वों का ज्ञान कराने में प्रति समर्थ है। इस महान् ग्रन्थ पर भाष्य, वृत्ति-टीका तथा विवरणादि विशेष प्रमाण में उपलब्ध हैं, एवं विविध भाषाओं में भी इस पर विपुल साहित्य रचा गया है, उनमें से कुछ मुद्रित भी है और कुछ अाज भी अमुद्रित है।
१०८ ग्रन्थों के सर्जक समर्थ विद्वान् पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वर जी म. श्री ने भी इस तत्त्वार्थाधिगम सूत्र पर प्रकाशित हुए संस्कृत-प्राकृतहिन्दी-गुजराती प्रादि ग्रन्थों का अवलोकन कर और उन्हीं का पालम्बन लेकर सरल संस्कृत भाषा में संक्षिप्त 'सुबोधिका टीका' रची है, तथा सरल हिन्दी भाषा में अर्थयुक्त विवेचनामृत अतीव सुन्दर लिखा है ।
___इसके प्रथम और द्वितीय अध्याय की सुबोधिका टीका और तत्त्वार्थ विवेचनामृत युक्त पहला भाग हमारी समिति की ओर से पूर्व में प्रकाशित किया गया है। अब श्रीतत्त्वार्थाधिगम सूत्र के तीसरे और चौथे अध्याय का यह दूसरा भाग प्रकाशित करते हुए हमें अति हर्ष-आनंद का अनुभव हो रहा है।
परमपूज्य आचार्य म. श्री को इस ग्रन्थ की सुबोधिका टीका, विवेचनामृत तथा सरलार्थ बनाने की सत्प्रेरणा करने वाले उन्हीं के पट्टधर-शिष्यरत्न पूज्य उपाध्याय श्रीविनोदविजयजी गरिणवर्य म. तथा पूज्य पंन्यास श्रीजिनोत्तमविजयजी गरिणवर्य म. हैं। हमें इस ग्रन्थ को शीघ्र प्रकाशित करने की सत्प्रेरणा देने वाले भी पू. उपाध्यायजी म. और पू. पंन्यास जी म. हैं ।