Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 10
________________ बुद्धिसागरसूरिजी कृत " विजापुर वृतांत "मांथी उद्धृत, (३) “ तपगच्छनी उत्पत्ति, " लेखकपूज्यपाद मुनिमहाराज श्री दर्शनविजयजो दिल्हीवाला अने (४) “ जैनाचार्योनो औपदेशिक प्रभाव " लेखकःमुनिराज श्री न्यायविजयजी दिल्हीवाला. आ ग्रंथना अतिमहत्त्वना अंगभूत आ लेखो आपवा माटे ए मूळ लेखकोनुं हुं जेटलं ऋण स्वीकारुं तेटलं ओछं छे. नगरशेठ श्रीमान् कस्तुरमाई मणिभाई, मुनिराज श्री मंगलविजयजी, मुनिराज श्री चरणविजयजी, श्रीयुत् भाईश्री धीरजलाल टोकरशी शाह, श्री जैन आत्मानंद सभा-भावनगर, श्री जैनधर्म प्रसारक सभा-भावनगर, श्रीयशोविजयजी जैनग्रंथमाला भावनगर, तथा अन्य जे जे व्यक्तिओए प्रत्यक्ष के परोक्ष रीते मने आ कार्यमा सहकार आप्यो छे तेओनो हुं आभार मानु छं. आ पुस्तकने मुद्रणकळानी दृष्टिए बनी शके तेटली आकर्षक रीते छापवा माटे तथा वंशवृक्ष विभागमा वारंवार करवा पडेल सुधारा वधाराना कारणे उपस्थित थती दरेक प्रकारनी मुश्केलीने नभावी लेवा माटे मणिमुद्रणालय-अमदावादना मेनेजर श्रीयुत सोमाभाई देसाई तथा प्रेसना कम्पोझिटर भाईओए आपेल सहकारनी मारे नांध लेवी जोइए. पुस्तक शुद्ध तेमज आकर्षक बनाववा माटे श्रीयुत भाई रतिलाल दीपचंद देसाई तथा श्रीयुत भाई बालाभाई वीरचंद देसाईए लीधेल जहेमत माटे मारे आभार मानवो जोइए. प्रारम्भमां आ पुस्तकनी जाहेरात करतो वखते आनुं छूटक मूल्य ०-१२-० राखेखें परन्तु पाछळथी पुरतकनु कद धार्या करतां लगभग देढुं थई जवाथी तेमज १२ जेटला आट'लेटस उपर चित्रो आपेलां होवाथी तेनुं मूल्य १-०-० करवू पड्यु छे. वळी पुस्तक तैयार करीने बहार पाडवामां पण असाधारण विलंब थयो छे. छतां आ बधानी पाछळ पुस्तक जेम बने तेम अधिक उपयोगी थाय ते उद्देश होवाथी समाज तेने क्षतव्य गणशे एवी आशा छे. जेओए आ पुस्तकना प्रथमथी ग्राहक बनीने मारा कार्यमा मने उत्साहित कयों छे, तेओनी भली लागणीओने हुं न भूली शकुं. अस्तु. भारतीय इतिहासमां जैन इतिहासमुं तेमज जैन श्रमण संस्कृतिना इतिहासवें स्थान अति महत्वनुं छे. ए इतिहासना अभ्यासीने थोडे अंशे पण आ पुस्तक उपयोगी थई पडशे तो मारो नम्र प्रयास हुं सफळ थयो लेखीश.. आ पुस्तकमां जणाती भूलो के खामीओ तरफ विद्वाना मित्रभावे माझं ध्यान दोरवानी कृपा करे एवी नम्र भावना साथे हुं विर{ छं. वीर संवत २४६२ श्रावण सुद १५ झवेरीवाड, सातभाईनी हवेली, अमदावाद. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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