Book Title: Tao Upnishad Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 9
________________ सामान्य बुद्धि है उस बुद्धि के अनुसार हमें श्रेष्ठ चरित्र खाली मालूम होगा। क्योंकि हम जिसे चरित्र कहते हैं वह तो चरित्र है ही नहीं। हम जिसे चरित्र कहते हैं उसे हम एक शिखर की भांति देखने के आदी हो गए हैं। ताओ का जो चरित्र है, वस्तुतः जो निर्मल धर्म का चरित्र है, वह तो हमें घाटी की तरह दिखाई देगा क्योंकि हम उल्टे खड़े हैं।' इस पुस्तक में कुल इक्कीस प्रवचन संकलित हैं। और जैसा कि ओशो का रिवाज है, लाओत्से के सूत्रों के अलावा कुछ प्रश्नोत्तर भी शामिल हैं। अब यह सवाल हर एक के दिल में अवश्य उठा होगा कि आध्यात्मिक सूत्रों के साथ सामान्य मनुष्य के साधारण प्रश्नों की क्या संगति है? क्या इससे इन सूत्रों की ऊंचाई कम नहीं होती? लेकिन ओशो जैसे सदगुरुओं के हर कृत्य के पीछे गहरे कारण होते हैं। यह भी उनकी एक विधि है जिसके द्वारा वे मनुष्य के मन पर काम कर रहे हैं। आइये उन्हीं के द्वारा सुनें: 'प्रश्नों के उत्तर मैं नहीं देता हूं। मैं केवल विधि देता हूं जिससे प्रश्न हल किए जा सकते हैं। मैं जो आपके प्रश्नों के उत्तर देता हूं, उन उत्तरों से मुझे कोई मोह नहीं है। उनको आप पंडित की तरह याद मत रखना। आप तो सिर्फ प्रक्रिया समझें कि एक प्रश्न में कैसे उतरा जा सकता है, और एक प्रश्न से कैसे जीवंत लौटा जा सकता है बाहर, समाधान लेकर। और जिस दिन आपके प्रश्न आपके भीतर ही गिरने लगे और आपकी चेतना से उत्तर उठने लगें उस दिन समझना कि आप मेरे उत्तरों को समझ पाए। तो लाओत्से और ओशो के इस मधुर समस्वरता में आपका स्वागत है। अगर लाओत्से से पूछे तो वह इस घटना का वर्णन करेंगे-'जहां स्वर्ग और पृथ्वी का आलिंगन होता है वहां मीठी-मीठी वर्षा होती है।' मा अमृत साधना

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