Book Title: Taittiriyo Pnishad
Author(s): Geeta Press
Publisher: Geeta Press

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Page 12
________________ ( ३ ) भृगुवल्ली प्रथम अनुवाक २६. भृगुका अपने पिता वरुणके पास जाकर ब्रह्मविद्याविषयक प्रश्न करना तथा वरुणका ब्रह्मोपदेश ... द्वितीय अनुवाक } २७. अन्न ही ब्रहा है - ऐसा जानकर और उसमें ब्रह्मके लक्षण घटाकर भृगुका पुनः वरुणके पास आना और उसके उपदेश से पुनः तप करना तृतीय अनुवाक २८. प्राण ही ब्रह्म है--ऐसा जानकर और उसीमें ब्रह्मके लक्षण घटाकर भृगुका पुनः वरुणके पास आना और उसके उपदेशसे पुनः तप करना चतुर्थ अनुवाक २९. मन ही ब्रह्म है - ऐसा जानकर और उसमें ब्रह्मके लक्षण घटाकर भृगुका पुनः वरुण के पास आना और उसके उपदेशसे पुनः तप करना पश्ञ्चम अनुवाक ३०. विज्ञान ही ब्रह्म है - ऐसा जानकर और उसमें ब्रह्मके लक्षण घटाकर भृगुका पुनः वरुणके पास आना और उसके उपदेशसे पुनः तप करना पष्ठ अनुवाक ३१. आनन्द ही ब्रह्म है - ऐसा भृगुका निश्चय करना, तथा इस भार्गवी वारुणी विद्याका महत्व और फल *** ... नवम अनुवाक ३४. अन्नसञ्चयरूप व्रत तथा पृथिवी और आकाशरूप अन्नब्राके उपासकको प्राप्त होनेवाले फलका वर्णन ... ... सप्तमं अनुवाक ४ ३२. अन्नकी निन्दा न करनारूप व्रत तथा शरीर और प्राणरूप अन्नब्रह्मके उपासकको प्राप्त होनेवाले फलका वर्णन अष्टम अनुवाक ३३. अन्नका त्याग न करनारूप व्रत तथा जल और ज्योतिरूप अन्नब्रह्मके उपासकको प्राप्त होनेवाले फलका वर्णन ... ... ... २०१ २०६ २०८ २०९ २१० २११ २१४ २१६ २१७

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