Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 28
________________ धर्म एवं धर्म समझने की प्रक्रिया उपरोक्त प्रकार के धर्म को समझने के लिए आतुर आत्मार्थी जीव को धर्म समझने के लिए सहज ही निम्नांकित प्रश्न उपस्थित होते हैं १. धर्म किसको करना है ? २. धर्म कहाँ होता है ? ३. धर्म का स्वरूप क्या है ? ४. धर्म प्राप्ति का उपाय क्या है ? उक्त चार प्रश्नों के समाधान प्राप्ति के माध्यम से यह जीव धर्म प्राप्त करने के लिए उद्यत होता है। धर्म किसको करना है ? हर-एक व्यक्ति यह कहता एवं मानता है कि धर्म तो तुझे करना है लेकिन वह मैं, जिसको यह मुझे कहता है कौन हूँ, उसका स्पष्ट ज्ञान हुए बिना धर्म काम करने प्रारम्भ ही कैसे हो सकेगा ? । सामान्यत: हर-एक व्यक्ति इस वर्तमान में प्राप्त शरीर के साथ आत्मा की मिली-जुली असमान-जातीय पर्याय अर्थात् दशा को “मैं" मानता आ रहा है। अर्थात् आत्मा तो एक चेतन द्रव्य है और यह शरीर पुद्गल परमाणुओं के पिण्ड अचेतन द्रव्यों का समुदाय है, ऐसी दोनों असमान जातीय द्रव्यों की मिली-जुली जो यह वर्तमान पर्याय , उस ही को यह “मैं” मानता चला आ रहा है। लेकिन दोनों विजातीय द्रव्य होने से दोनों के धर्म अर्थात् स्वभाव भी अलग प्रकार के होने ही चाहिए। लेकिन सुख शांति तो मुझे अर्थात् आत्मा को चाहिए, शरीर तो अचेतन है, उसको तो दुःख की जानकारी भी नहीं होती तो उसको सुख की भी आवश्यकता रहती ही कहाँ है। लेकिन मैं तो, शरीर की वर्तमान पर्याय को “मैं” मानता चला आ रहा हूँ, लेकिन मृत्युकाल के समय का प्रत्यक्ष अनुभव है कि इन दोनों में से इस शरीर को तो यहाँ ही जलाकर राख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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