Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 102
________________ १००] [ सुखी होने का उपाय सब कथनों का अभिप्राय भी मात्र यही सूचित करता है कि कार्य की सम्पन्नता के समय तो पाँचों ही समवायों का समवायीकरण था, अर्थात् एक साथ एकत्रित हो जाना सूचित करता है, ऐसे कथनों का अभिप्राय भी कर्तृत्वबुद्धि की विपरीत मान्यता, अभाव करना ही है। क्योंकि पाँचों ही समवायों को एकत्रित करने अर्थात् जुटाने वाला तो कोई है ही नहीं. और न हो ही सकता है। यह तो विश्व का स्वाभाविक अनादि निधन व्यवस्था है। अत: इनको मिलाने वाला कोई नहीं हो सकता। मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३०९ पर कहा गया है कि : “यहाँ प्रश्न है कि मोक्ष का उपाय काललब्धि आने पर भवितव्यानुसार बनता है, या मोहादि के उपशमादि होने पर बनता है, या अपने पुरुषार्थ से उद्यम करने पर बनता है सो कहो। यदि प्रथम दोनों कारण मिलने पर बनता है तो हमें उपदेश किसलिये देते हो? और पुरुषार्थ से बनता है तो उपदेश सब सुनते हैं, उनमें कोई उपाय कर सकता है, कोई नहीं कर सकता, सो कारण क्या ? समाधान :- एक कार्य होने में अनेक कारण मिलते हैं। सो मोक्ष का उपाय बनता है वहाँ तो पूर्वोक्त तीनों ही कारण मिलते हैं, और नहीं बनता वहाँ तीनों ही कारण नहीं मिलते। पूर्वोक्त तीन कारण कहे उनमें काललब्धि व होनहार तो कोई वस्तु नहीं हैं, जिस काल में कार्य बनता है वही काललब्धि, और जो कार्य हुआ वही होनहार । तथा जो कर्म के उपशमादिक हैं वह पुद्गल की शक्ति है उसका आत्मा कर्ता हर्ता नहीं है तथा पुरुषार्थ से उद्यम करते हैं सो यह आत्मा का कार्य है, इसलिए आत्मा को पुरुषार्थ से उद्यम करने का उपदेश देते हैं।" उपरोक्त प्रकार से पुरुषार्थ नाम के समवाय को ही मुख्य कहा है। अत: उसका अभिप्राय एकमात्र आत्मा का अकृत्वस्वभाव है, वह समझना है। और यह ही एकमात्र आत्मा का वास्तविक पुरुषार्थ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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