Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 66
________________ ६४] [ सुखी होने का उपाय के साथ एकत्व के निश्चय से मूढ़ अज्ञानी जन को 'जो यह अनुभूति ( ज्ञान ) है वही मैं हूँ' ऐसा आत्मज्ञान उदित नहीं होता" आदि-आदि। अत: निर्णय में आता है कि सभी आत्माओं का स्वभाव ही जानना है और ज्ञान का स्वभाव स्व पर प्रकाशक होने के कारण, स्व को जानते हुए परको भी एकसाथ जानता ही है। अत: मेरी आत्मवस्तु का स्वभाव भी स्वपर का ज्ञायकपना ही है। यही “वत्थु सहावो धम्मो” का तात्पर्य है कि मेरे आत्मा का धर्म अर्थात् स्वभाव मात्र ज्ञायक ही है, कर्ता-भोक्ता नहीं हैं। उपरोक्त चर्चा हमारे मूल विषय “धर्म समझने की प्रक्रिया के तीसरे बिन्दु “धर्म का स्वरूप क्या है” के अन्तर्गत “वत्थु सहावो धम्मो के माध्यम से” जीव नामक वस्तु अर्थात् मेरी आत्मा का स्वभाव क्या है” इस विषय पर चर्चा चली और यह समझ में आया कि अगर मेरा आत्मा अपने स्वभाव रूप ही परिणमन करता रहे, बना रहे, अर्थात् अरहंत भगवान के समान परज्ञेय रूप सारे जगत से उपेक्षित रहकर, मात्र स्वज्ञेय को मुख्य बनाकर, स्वज्ञेय का ज्ञाता बना रहे तो आकुलता अर्थात् रागद्वेष की उत्पत्ति का अवकाश ही नहीं रहता और परम निराकुल रूपी सुखामृत का स्वादी अनन्त काल तक रह सकता है। ___ “वत्थु सहावो धम्मो” विषय का उपसंहार धर्म का स्वरूप समझने के अंतर्गत “वत्थु सहावो धम्मो" के माध्यम से हमने समझा कि - १ जगत में वस्तुएँ जाति अपेक्षा छह होने पर भी संख्या अपेक्षा अनन्त हैं, उन सबमें से मैं भी तो उन सबसे अलग अकेला जीवद्रव्य हूँ। मेरे शरीरादि भी तो मेरे जीवद्रव्य नहीं हैं। २ सत् वस्तु का स्वभाव है, यथा “सत् द्रव्य लक्षणम्, उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत्” अर्थात् हर एक वस्तु सत्स्वभावी होने से, अपने आपके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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