Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 88
________________ ८६] [सुखी होने का उपाय क्वालिटी जाननपना छोड़कर जानन क्रिया के अतिरिक्त और क्या और कैसे कुछ भी कर सकेगा? एक जाननपने के आधार पर समझा जावे तो, सिद्धांत यह है कि अगर कोई भूल होती है तो भूल भी जानने वाला ही कर सकता है, जो कुछ जानता ही नहीं है वह तो भूल करेगा ही कैसे अत: जो कुछ भी नहीं जानने वाले पाँचों द्रव्य कार्य कर रहे हैं वे सब कार्य तो भूल बिना के ही हैं अर्थात् स्वाभाविक हैं। अत: जीव भी अगर स्वाभाविक रूप से कार्य करता रहे तो उसके भी सब कार्य भी, बिना भूल के ही होने चाहिए। लेकिन अगर वैसा न करके वह अन्य रूप से करने लगता है तो यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि वह ही भूल करता है, क्योंकि भूल कर सकने की सामर्थ्य भी तो उस अकेले जीव में ही है, अत: इस दृष्टि को ध्यान में रखकर हमको जीवद्रव्य के कार्यकलाप का विश्लेषण करना चाहिए। ___ इस जीव में एक ज्ञानगुण ही ऐसा है जो अन्य द्रव्यों से अधिकता अर्थात् विशेषता वाला है। अगर यह जीव मात्र जानना-जाननारूप उत्पाद निरन्तर करता रहे अर्थात् उस जाननक्रिया में जानने मात्र के अतिरिक्त अन्य कोई प्रकार की घालमेल नहीं करे तो, जैसे सब द्रव्य अपने स्वाभावक रूप से परिणमन कर रहे हैं, वैसे ही यह भी अनवरतरूप से परिणमन करता हुआ रह सकता है। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण भगवान् अरहंत की आत्मा है। भगवान अरहंत की आत्मा जानने रूप प्रर्वतते हुए भी, अपने ज्ञान में अन्य कोई प्रकार की घालमेल नहीं करती, अत: उनका परिणमन सभी द्रव्यों के समान स्वाभाविक परिणमन बना रहता है। अन्य द्रव्य तो अचेतन होने के कारण स्वाभाविक परिणमन करते रहते हैं और सुखदुःख की अनुभूति नहीं करते । जीव चेतनद्रव्य होने से स्वाभाविक परिणमन करता है तो, सुख की अनुभूति करता है और अस्वाभाविक परिणमन करता है तो दुःख की अनुभूति करता है । जब वह स्वाभाविक परिणमन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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