Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 93
________________ वस्तु स्वभाव एवं विश्व व्यवस्था ] [ ९१ समाधान :- इसका कारण तो मात्र अपनी देखने की दृष्टि की भूल है। क्योंकि कार्य तो एक ही हुआ है, लेकिन उसमें कारण दो हैं। एक तो वस्तु ने स्वयं उस कार्यरूप परिणमन किया है। अत: कार्य का कारण वह वस्तु है, जिस को आगम में उपादान कारण के नाम से कहा गया है। दूसरा कारण वह है कि जिसने स्वयं ने तो कार्यरूप परिणमन नहीं किया है, लेकिन उस कार्य की उत्पत्ति के समय ही अपने आप में परिणमन करते हुए उस कार्य के अनुकूल रूप था । अर्थात् अनेक द्रव्यों के परिणमन में उसका ही परिणमन , उपादान के कार्यरूप परिणमन के अनुकूल हुआ है। उस ही को आगम में निमित्तकारण से कहा गया है। जैसे कि पानी रूपी पुद्गल के स्कंधों का ठंडी अवस्था से गरम रूप परिणमन तो पानी रूपी पुद्गल स्कंधों का ही हुआ है; अग्नि का एक अंश भी पानी में नहीं आया लेकिन अग्नि की ज्वाला रूप अवस्था की उत्पत्ति एवं पानी की गरम अवस्था रूप उत्पत्ति का काल एक ही था अर्थात् एक साथ ही दोनों होते हैं, इसी को आगम में एककालप्रत्यासत्ति के नाम से संबोधित किया गया है। इसप्रकार हमको तो मात्र अकेला कार्य ही दिखता है। हमारी विपरीत मान्यता के दो कारण दिखते ही नहीं हैं। साथ ही उस कार्य की उत्पत्ति में निमित्त बाह्य वस्तु होने से हमको ऐसा दिखता है कि इस निमित्त ने ही कार्य का उत्पादन किया हो। क्योंकि उसके उत्पादन के समय हमको वैसा ही उत्पादन करने की इच्छा भी होती है और अपना कुछ पुरुषार्थ हुआ भी दिखता है। लेकिन असली उत्पादक जो वस्तु है वह हमारी दृष्टि से बाहर ही रह जाती है। ऐसा दिखने का मूल कारण तो देखने वाले की दृष्टि का दोष ही है, क्योंकि स्वभाव की मुख्यता से देखने वाले को तो वह कार्य उस वस्तु का परिणमन ही दिखता है। और संयोग अर्थात् निमित्त की मुख्यता से देखने वाले को, निमित्त ने ही उस कार्य का उत्पादन किया ऐसा दिखता है । इसमें बुद्धिमान् को स्वयं ही यह निर्णय करना चाहिए कि वास्तविक स्थिति क्या है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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