Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 95
________________ वस्तु स्वभाव एवं विश्व व्यवस्था ] [ ९३ आवश्यकता ही नहीं रहती ? इससे तो नियतवाद का पोषण होगा, जो कि आगम सम्मत है नहीं ? समाधान :- किसी भी द्रव्य का जो भी कार्य, किसी भी समय सम्पन्न होता है तो उसमें अनेक कारण मिलते हैं । मिलाने नहीं पड़ते यथा मोक्षमार्ग प्रकाशक के नवें अध्याय में कहा है कि “एक कार्य होने में अनेक कारण मिलते हैं।” लेकिन कथन किसी एक कारण की मुख्यता से ही हो पाता है। उससे ऐसा नहीं समझ लेना चाहिए कि कार्य होने के समय बाकी के अन्य कारणों का सद्भाव ही नहीं था । साथ ही यह भी निश्चित है कि अन्य कारणों को मिलाने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती । जब-जब भी कार्य की सम्पन्नता होती है सभी कारण स्वतः ही बिना मिलाये इकट्ठा करें मिलेंगे ही मिलेंगे। ऐसा नहीं है कि कार्य की सम्पन्नता किसी कारण के नहीं मिलने के कारण कभी रुक जावे । · निष्कर्ष यह है कि विश्व के हर एक द्रव्य का हर समय कोई न कोई प्रकार का कार्य तो होता ही रहता है, और हर समय ही सभी कारण स्वत: रूप से अपने-अपने परिणमन से परिणमते हुए रहते ही हैं। इस से ही, जब-जब भी कार्य की सम्पन्नता के कारणों का विवेचन किया जावेगा, उसको किसी एक कारण की मुख्यता से हुवा ही कहना पड़ेगा और अन्य कारणों को गौण रखना ही पड़ेगा । इसप्रकार वस्तु की कार्य सम्पन्नता में, सभी द्रव्यों की स्वतंत्रता सम्पन्न, कारण कार्य व्यवस्था है 1 पाँच समवाय व कार्य की सम्पन्नता अब यह समझना शेष कि वे कारण कौन-कौन हैं ? इस संबंध में पण्डित फूलचंदजी सिद्धान्त शास्त्री ने " जैन तत्त्व मीमांसा” पुस्तक के द्वितीय संस्करण के पृष्ठ १३२ पर इसप्रकार लिखा है पाँच हेतुओं का समवाय " साधारण नियम यह है कि प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति में पाँच कारण नियम से होते हैं। स्वभाव, पुरुषार्थ, काल, नियति और कर्म । यहाँ पर Jain Education International For Private & Personal Use Only ---- www.jainelibrary.orgPage Navigation
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