Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 98
________________ ९६] [सुखी होने का उपाय मोक्षमार्ग में पुरुषार्थ की मुख्यता प्रश्न खड़ा होता है कि अगर कार्य की सम्पन्नता में पाँचों समवाय स्वत: मिलते ही मिलते हैं, जिन पाँचों में पुरुषार्थ नाम का समवाय भी शामिल है, तो हमको पुरुषार्थ करने का भी अवकाश कहाँ रह जाता है? फलत: नियतवाद का ही प्रसंग उपस्थित रहेगा। इसका समाधान आचार्यकल्प पं. टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक में नवमें अधिकार के पुरुषार्थ वाले प्रकरण में निम्न अनुसार दिया है। “यहाँ प्रश्न है कि मोक्ष का उपाय काललब्धि आने पर भवितव्यतानुसार बनता है, या मोहादिक के उपशामदि होने पर बनता है, या अपने पुरुषार्थ से उद्यम करने पर बनता है सो कहो । यदि प्रथम दोनों कारणों के मिलने पर बनता है तो हमें उपदेश किसलिये देते हो? और पुरुषार्थ से बनता है तो उपदेश सब सुनते हैं उनमें कोई उपाय कर सकता है, कोई नहीं कर सकता; सो कारण क्या? समाधान :- एक कार्य होने में अनेक कारण मिलते हैं। सो मोक्ष का उपाय बनता है वहाँ तो पूर्वोक्त तीनों ही कारण मिलते हैं, और नहीं बनता वहाँ तीनों ही कारण नहीं मिलते। पूर्वोक्त तीनों कारण कहे उनमें काललब्धि व होनहार तो कोई वस्तु ही नहीं है, जिस काल में कार्य बनता है वही काललब्धि, और जो कार्य हुआ वही होनहार । तथा जो कर्म के उपशमादि हैं वह पुद्गल की शक्ति है, उसका आत्मा कर्ता-हर्ता नहीं है। तथा पुरुषार्थ से उद्यम करते हैं सो यह आत्मा का कार्य है; इसलिये आत्मा को पुरुषार्थ से उद्यम करने का उपदेश देते हैं।" इसके आगे फिर कहते हैं कि -- “इसलिये जो पुरुषार्थ से मोक्ष का उपाय करता है उसको सर्व कारण मिलते हैं और उसको अवश्य मोक्ष की प्राप्ति होती है- ऐसा निश्चय करना।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116