Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 81
________________ वस्तु स्वभाव एवं विश्व व्यवस्था ] [७९ ही संबंध को निमित्त-नैमित्तक संबंध कहा जाता है और यही आगम सम्मत विश्व व्यवस्था है । छह द्रव्यों का समुदाय वही विश्व है, उस विश्व में हर एक द्रव्य हर समय, अपने आप को कायम रखते हुए अनवरतरूप से अपनी-अपनी पर्यायों में उत्पाद व्यय करता ही रहता है। कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्य के उत्पादव्यय में न साधक ही होता है न बाधक ही। लेकिन फिर भी हर समय हर एक समय के कार्य में एक-दूसरे की पर्याय का आपस में निमित्त-नैमित्तिक संबंध बनता ही रहता है । ऐसी स्वाभाविक विश्व व्यवस्था है। यह व्यवस्था किसी के रोकने से रुक नहीं सकती, बदल नहीं सकती, घट नहीं सकती एवं बढ़ भी नहीं सकती, लेकिन अनवरत रूप से चलती ही रहती है । इस विषय में गंभीरता से चिंतन-मनन करें तो हमारे विश्वास में भी उक्त विषय की सत्यता प्रमाणित होगी। क्योंकि हमारे दैनिक जीवन में हर समय ऐसे प्रसंग अनवरत रूप से बनते हुए अनुभव में आते हैं। अत: छह द्रव्यों की पर्यायों का हर समय आपस में निमित्त-नैमित्तिक संबंध बनता ही रहता है, इस सत्य को स्वीकार करना ही योग्य है। निमित्त-नैमित्तिक संबंध एवं कर्ताकर्म संबंध का अन्तर हर एक द्रव्य का अपनी पर्यायों के साथ संबंध वह वास्तविक कर्ताकर्म संबंध है। तथा एक द्रव्य के साथ दूसरे द्रव्य का संबंध वह निमित्त-नैमित्तिक संबंध है। वास्तविक कर्ता-कर्म संबंध तो व्याप्य-व्यापक में ही होता है, यथा पर्याय द्रव्य में व्याप्त होती है, द्रव्य-पर्याय में व्यापक होता है, अत: इनका संबंध कर्ता-कर्म संबंध है। लेकिन जिनका आपस में व्याप्य-व्यापक न हो उनके संबंध को निमित्त-नैमित्तिक संबंध कहा जाता है, जैसे कि जीव के साथ पुद्गल, धर्म, अधर्म आदि द्रव्यों के संबंध को निमित्त-नैमित्तिक संबंध कहा गया है। ____ इस बात को आचार्य अमृतचंद्रदेव ने समयसार, गाथा ८० से ८२ की टीका में एवं कलश ४९ एवं ५१ में निम्नप्रकार कहा है कि :-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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