Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 39
________________ वस्तु स्वभाव एवं विश्व व्यवस्था ] [ ३७ के समुदाय हैं | जब वह द्रव्य स्वयं अनादि अनन्त रहने वाले सत्तारूप पदार्थ हैं तो, उन द्रव्यों के अपने-अपने गुण भी सत्तारूप अनादि अनन्त रहने वाले सहज ही सिद्ध हो जाते हैं अर्थात् गुणों के समुदायस्वरूप हर एक द्रव्य स्वयं ध्रुव एक-सा अनादि अनन्त बना ही रहता है, कभी नष्ट नहीं हो सकता । लेकिन साथ ही उन गुणों का समुदायरूप द्रव्य हर समय परिवर्तन भी करता ही रहता है। क्योंकि स्वयं कायम रहते हुए भी प्रतिक्षण बदलते रहना वस्तु का स्वभाव है और ऐसा ही प्रत्यक्ष अनुभव में भी आता है । इसलिये इसमें शंका का कोई अवकाश ही नहीं रह जाता । ऐसी स्थिति में जब वह द्रव्य स्वयं पलटता है तो, उसके सभी गुण भी पलटे बिना कैसे रह सकते हैं ? अतः सभी गुणों की, हर समय नवीन-नवीन रूप से उपस्थिति हमारे अनुभव में आती है। जैसे, मेरे आत्मा में ही अनन्त गुण हैं । विचार करें तो उनमें से एक समय में ज्ञान, पहले समय किसी को जानता था दूसरे समय दूसरे को जानता है । उसी समय चारित्रगुण की विपरीतता में कभी क्रोध आता है, दूसरे समय ही मान आ जाता है या क्रोध ही कम ज्यादा हो जाता है । इसीप्रकार सुख के स्थान पर दुःख और दुःख के स्थान पर सुख आदि-आदि परिवर्तन प्रत्यक्ष अनुभव में आते हैं, फिर भी वह जीवद्रव्य एवं उसके ज्ञान - चारित्र आदि गुण तो स्थाई रूप से बने ही रहते हैं। उनकी अवस्थाएँ बदल जाने पर भी वे तो स्वयं बने ही रहते हैं। 1 स्वतंत्रता इसप्रकार उपर्युक्त ऊहापोह से एक महा सिद्धान्त का उदय हुआ कि जगत का हर एक पदार्थ अनन्त गुणों का समुदाय होते हुए भी, नवीन-नवीन अवस्थाओं को प्रगट करता हुआ अपनी सत्ता अनादि अनन्त बनाये हुए है । अर्थात् कोई भी अन्य द्रव्य या उसका कोई भी अंश, किसी अन्य द्रव्य की सत्ता में किंचितमात्र भी दखल नहीं दे सकता, तो उस द्रव्य के किसी भी गुण में दूसरे द्रव्य का दखल कैसे हो सकता है ? और जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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