Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 50
________________ ४८ ] [ सुखी होने का उपाय वस्तु इस प्रकरण के अन्तर्गत जिस धर्म की चर्चा की गई है, वह मात्र आत्मा के धर्म की चर्चा नहीं है, वरन् छहों द्रव्यों के स्वभाव की चर्चा है । लेकिन इसके समझे बिना आत्मा के धर्म के स्वरूप का भी निर्णय नहीं हो सकता; और उसका यथार्थ निर्णय हुए बिना, आत्मा का धर्म अर्थात् शांति का प्रगट होना असंभव है। ऐसे वस्तु के धर्म की चर्चा यहाँ की जा रही है । के स्वभाव को धर्म क्यों कहा गया है ? 4 वस्तु के स्वभाव को उस वस्तु का धर्म क्यों कहा गया है, यह हमारी चर्चा का मुख्य विषय है । इस प्रकरण के प्रारंभ में ही कहा गया था कि “ वत्थुसहावो धम्मो” अर्थात् वस्तु का स्वभाव ही उस वस्तु का धर्म है। इस ही विषय को समझने के लिए वस्तु क्या है, यह समझा एवं वस्तु का स्वभाव क्या है, यह भी समझा । अब वस्तु को अपने स्वभाव में ही रहना हर एक वस्तु का अपना-अपना धर्म है इस विषय को समझना है 1 यह तो हम समझ ही चुके हैं कि विश्व में वस्तुएँ जाति अपेक्षा छह प्रकार की होने पर भी संख्या अपेक्षा अनंत हैं । उनमें से हर एक वस्तु में अपने-अपने स्वभाव यानी गुण अनन्त - अनन्त हैं, तथा हर एक समय में वस्तु स्वयं कायम रहते हुए स्वयं पलटती भी रहती हैं, अर्थात् उस द्रव्य के हर एक गुण परिवर्तित होते रहने से पूर्व अवस्था को छोड़कर नवीन नवीन अवस्था यानी पर्याय धारण करते रहते हैं । Jain Education International यह हर एक द्रव्य अर्थात् वस्तु का स्वभाव है । उस पलटने में ही उस वस्तु के स्वयं के जो स्वभाव हैं, उन-उन स्वभावों जैसी ही नवीन-नवीन पर्यायों रूप से पलटना करता रहे अर्थात् उत्पाद करता रहे, उस ही को उस वस्तु का धर्म कहा जाता है । प्रवचनसार ग्रंथ की गाथा ९५ में कहा है कि – “स्वभाव को छोड़े बिना जो उत्पाद-व्यय-धौव्य संयुक्त है तथा गुणयुक्त और पर्याय सहित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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