Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 56
________________ ५४ ] [ सुखी होने का उपाय 1 ज्ञान के जानने के कार्य की मात्र इतनी ही नहीं, और भी महान विशेषता है कि जो घटना वर्तमान में मौजूद हो ही नहीं और पूर्व में घट चुकी हो उसको भी वर्तमान में वर्तमानवत् जान लेता है तथा जो घटना अभी वर्तमान में घटी भी नहीं है, उसको भी ज्ञान अपने ज्ञान द्वारा जान लेता है । उपरोक्त विशेषताओं के साथ-साथ ज्ञान में ऐसी असाधारण विशेषता है कि ज्ञान में जो कोई घटना ५० वर्ष पहले भी कभी घटी हो तो उसको जब भी याद करो, वह पुरानी हो जाने से कुछ धुंधली नहीं हो जाती, बल्कि वर्तमानवत् स्पष्ट ज्ञान में प्रत्यक्ष हो जाती है । ५० वर्ष पुरानी घटना होने से उसको ज्ञान में वर्तमान करने के लिए एक सेकेण्ड भी नहीं लगता। ऐसा नहीं है कि ५० वर्ष पुरानी घटना के बाद अन्य असंख्य घटनाएँ घट जाने से वह ५० वर्ष नीचे दबी हुई है, अतः उसे प्रत्यक्ष करने के लिए पीछे की घटनाओं को हटाकर पूर्व की घटना निकालने के लिए समय चाहिए। इसके साथ ही यह भी विशेषता है कि ५० वर्ष में घटी असंख्य घटनाओं का बोझ तो आत्मा में बढ़ जाना चाहिए। जैसे ५० वर्ष में किसी ने ५०० पुस्तकें पढ़कर उनका ज्ञान प्राप्त किया हो, वह तो आत्मा में निरन्तर मौजूद है, उनका वजन आत्मा में बढ़ जाना चाहिए था, लेकिन उस संबंधी वजन आत्मा में नहीं बढ़ जाता। इससे यह सिद्धान्त निकलता है कि आत्मा का ज्ञान विश्व के समस्त पदार्थों को क्रमशः अथवा एक साथ जानकर अपने ज्ञान के खजाने के स्टॉक में रखकर भी कोई वजनी अर्थात् बोझवाला नहीं हो जाता, अत्यन्त निर्धार ही रहता है। इससे यह भी निष्कर्ष निकला कि आत्मा अमूर्तिक है क्योंकि इतना सब कुछ ज्ञान में रहते हुए भी वजन वाला नहीं होता । इस से भी ज्यादा, ज्ञान में एक और भी महत्वपूर्ण विशेषता है कि जब आत्मा में क्रोधादि कोई भी कषाय उत्पन्न होती है तब, उस समय ही ज्ञान, उस कषाय की स्थिति, तीव्रता, मन्दता आदि सब जानते रहने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116