Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 34
________________ ३२ ] धर्म का स्वरूप है, " वत्थु सहावो धम्मो " “ वत्थु सहावो धम्मो ” आचार्य महाराज ने धर्म की एक विशद् व्याख्या की है । " वत्थु सहावो धम्मो” अर्थात् वस्तु का स्वभाव ही उस वस्तु का धर्म है; यह धर्म की एक सार्वभौमिक व्याख्या है। अर्थात् विश्व में जो भी जितनी भी वस्तुएं हैं, उन सबमें अपने-अपने स्वभाव हैं, और वे स्वभाव ही उन-उन वस्तुओं के निजधर्म हैं । इस पर निम्न तीन प्रश्न उत्पन्न होते हैं : [ सुखी होने का उपाय १. वस्तु क्या है ? २. वस्तु के स्वभाव से क्या आशय है ? ३. वस्तु के स्वभाव को धर्म क्यों कहा गया ? इन विषयों पर क्रमश: विचार किया जावेगा। इनमें से सर्वप्रथम यह समझेंगे कि “वस्तु क्या है ?" वस्तु क्या है ? यह समस्त लोक जिसको हम विश्व भी कहते हैं जो हमको दिखता भी है वह छह प्रकार की वस्तुओं से भरा हुआ है अर्थात् इन छह वस्तुओं के समुदाय को ही लोक अथवा विश्व कहा जाता है । इन छह वस्तुओं को छह द्रव्यों के नाम से भी जाना जाता है अर्थात् छह द्रव्यों के समुदाय को ही विश्व कहते हैं । Jain Education International वे छह द्रव्य कौन-कौन से हैं, तो उनके नाम हैं – जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल । इन छह में धर्म-अधर्म पाप-पुण्य के वाचक नहीं हैं, वरन् ये दोनों धर्मद्रव्य एवं अधर्मद्रव्य नाम की दो अलग-अलग वस्तुएँ हैं । इन छह में से जीव और पुद्गल तो सारे विश्व में अनेक रूपों में अनेकों की संख्या में हमको प्रत्यक्ष अनुभव में आते ही हैं । लेकिन बाकी के चार द्रव्य आसानी से समझ में नहीं आ पाते। अतः इनको समझने के पूर्व, हम जीव द्रव्य की ही चर्चा मुख्यरूप से करेंगे, क्योंकि I For Private & Personal Use Only · www.jainelibrary.org

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