Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 1 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 36
________________ ३४] [ सुखी होने का उपाय वस्तुओं में से किसी एक ही द्रव्य में अर्थात् छह द्रव्यों में से किसी एक ही प्रकार के द्रव्यों में पाया जाता हो उसको विशेष स्वभाव अर्थात् विशेष गुण कहते हैं। ये विशेष गुण ही उन वस्तुओं की पहचान के लक्षण कहे जाते हैं। सभी द्रव्यों में सामान्य रूप से पाये जाने वाले गुणों में सबसे मुख्य है-“अस्तित्व गुण।” कहा भी है “सत्द्रव्यलक्षणम्" सत्द्रव्यलक्षणम् आचार्यों ने सभी वस्तुओं का मुख्य स्वभाव बताया कि हर एक द्रव्य किसी भी हालत में किसी भी स्थान पर हो, लेकिन उसका अस्तित्व रहना ही मुख्य स्वभाव है। आचार्य उमास्वामी महाराज ने तत्वार्थसूत्र में कहा भी है- “सत्द्रव्यलक्षणं” अर्थात् अस्तित्व रहना-कभी नाश नहीं होना ही वस्तु का सबसे मुख्य लक्षण है। इस सद् स्वभाव को समझने से ऐसी श्रद्धा उत्पन्न होनी चाहिए कि “मैं भी एक जीवद्रव्य हूँ और मेरा भी सत्ता लक्षण है, अत: मेरा कभी किसी भी प्रकार से कोई नाश सर्वथा नहीं कर सकता। यही कारण है कि मेरा जीवद्रव्य अनादि से अभी तक भी है और आगे भी किसी भी रूप में हो रौं कायम रहूँगा। मेरी सत्ता का अभाव कभी भी नहीं हो सकेगा। इसीप्रकार जगत के जितने भी द्रव्य हैं उनकी भी सत्ता कोई नष्ट करना चाहे तो भी नहीं कर सकता।" पंचाध्यायी में कहा भी है : तत्त्व सत् लक्षण वाला है, सत्मात्र है, तथा स्वत: सिद्ध है, इसलिए अनादि-निधन, स्वसहाय, निर्विकल्प भी है। इन विचारों मात्र से भी अपने आप में अनन्त निर्भयता उत्पन्न होती है। तात्पर्य यह है कि जगत में जितने भी द्रव्य हैं, जाति की अपेक्षा छह प्रकार के एवं संख्या की अपेक्षा अनंतानंत। वे सभी द्रव्य हर एक अलग-अलग अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्तावान पदार्थ हैं, उनमें से किसी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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