Book Title: Subhashit Padya Ratnakar Part 03
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
7
गुणैर्महानसि गुरो ! गुरुताप्रकर्ष ! पापेष्वपि प्रकृतदृष्टिपियूषवर्ष ! वृत्त्यैकपूतपरिशुद्धवचोविमर्श ! भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् ॥५॥
कल्लोलकृद्वरकृपा भवतो विभाति विस्फुर्जते लसदनर्घ्यगुणाकरोऽन्तः । गम्भीरताऽतिजलधे ! नयनिम्नगाधे ! भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् ॥६॥
सीमानमत्र न गता न हि सा कलाऽस्ति प्रक्रान्तदिक्सुगुणसौरभ भाग्गुरोऽसि दृष्टाश्च दोषनिकरा दशमीदशायां भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् ॥७॥
त्वदपादपद्मभ्रमरेण देव ।
श्रीहेमचन्द्रोक्तिकृता सदैव ।
भानो ! नुतोऽसि भूरिभक्तिभावात् त्वत्संस्मृतिसाश्रुससम्भ्रमेण
事事事
11211
(इन्द्रवज्रा )

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 452