Book Title: Subhashit Padya Ratnakar Part 03
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 8
________________ मुग्धीकृता दृक् चरितं निरीक्ष्य गुणैकपश्या - परिकुण्ठितापि । यन्नामतो सिध्यति वाञ्छितं द्राक् पायात्स पापात् परमर्षि-प्रेमः ॥५॥ आयुःक्षयेण च्युतयोगयागः समागतश्चैव गतश्च सेहूं । प्राणांश्च दत्त्वा जिनशासनाय पायात्स पापात् परमर्षि-प्रेमः ॥६॥ क्वासन्नसिद्धस्य पुनो मयाप्तिः? क्व तद्गुणाब्धे-र्लवलेशलब्धि? तथापि याचे भवरागनागात् पायात्स पापात् परमर्षि-प्रेमः ॥७॥ यदीयसेवा इयमेव शिष्टा यदाशयस्य प्रतिपालनैव । श्रीहैमचन्द्रप्सितमेकमेव पायात्स पापात् परमर्षि-प्रेमः ॥८॥ 卐卐卐 .

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