Book Title: Sramana 2012 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 22
________________ ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा- जैनदर्शन का वैशिष्ट्य : 15 प्रगट अनुभव में आता है, तथापि जो अज्ञानी हैं, ज्ञेयों में आसक्त हैं उन्हें वह स्वाद में नहीं आता। प्रगट दृष्टान्त द्वारा बतलाते हैं कि जैसे-अनेक प्रकार के शाकाहारी भोजनों के सम्बन्ध से उत्पन्न सामान्य लवण के तिरोभाव और विशेष लवण के आविर्भाव से अनुभव में आने वाला जो (सामान्य का तिरोभाव और शाकादि के स्वादभेद से भेदरूप विशेषरूप) लवण है उसका स्वाद अज्ञानी शाकलोलुप मनुष्यों को आता है किन्तु अन्य के सम्बन्धरहितता से उत्पन्न सामान्य के आविर्भाव और विशेष के तिरोभाव से अनुभव में आने वाला जो एकाकार रूप अभेद लवण है उसका स्वाद नहीं आता और जो ज्ञानी है, ज्ञेयों में आसक्त नहीं है, वे ज्ञेयों से भिन्न एकाकार ज्ञान का ही आस्वाद लेते हैं, जैसे शाकों से भिन्न-नमक की डली का क्षार मात्र स्वाद आता है उसी प्रकार आस्वाद लेते हैं, क्योंकि जो ज्ञान है, सो आत्मा है जो आत्मा है सो ज्ञान है।"17 यहां पर आचार्य ने शाक मिश्रित लवण का दृष्टान्त देते हुए अपनी बात स्पष्ट की है कि शाक तथा लवण के मिश्रण की भांति अज्ञानी को सदा ही 'यह देह मैं ही हूँ, यह ज्वर मुझे ही है', ऐसा मिश्र स्वाद आता है किन्तु ज्ञानी को सदा ही ज्ञान सामान्य की स्मृति है। मेरा ज्ञान ज्वर तथा देहाकार परिणमित होने पर भी मैं देह तथा ज्वर से भिन्न ज्ञान ही हूँ, ज्ञान को देह नहीं और कभी ज्वर चढ़ता ही नहीं। अतः ज्ञान के ज्वराकार और देहाकार परिणाम भी ज्ञानी मात्र के ज्ञान की अनुभूति हैं। इसमें यह तर्क अपेक्षित नहीं है कि यदि निरंतर ज्ञान-सामान्य की दृष्टि रहे तो फिर ज्ञान के विशेषों का क्या होगा? वस्तुतः ज्ञान तो सहज ही ज्ञेय निरपेक्ष रहकर अनेकाकार में परिणमित होता रहता है। बिना किसी प्रबंध के ही वे ज्ञान में झलकते रहते हैं। इस प्रकर स्पष्ट है कि ज्ञानी अज्ञानी की मान्यता में भेद होने से ज्ञानी शांति समरसता का अनुभव करता है एवं अज्ञानी आकुलता-व्याकुलता का वेदन करता है। 7. ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा का सार :1. सारा जगत् ज्ञान का ज्ञेय होने पर भी ज्ञान में उसका प्रवेश न होने से असीम __ शांति का अनुभव करता है। 2. जीव ज्ञान स्वभावी है। ज्ञान का स्वभाव स्व-पर प्रकाशक होता है। स्वभाव परनिरपेक्ष, असहाय होने से ज्ञान को अपने जानने रूप व्यवसाय करने में पर की, ज्ञेय की किंचित् मात्र अपेक्षा नहीं होती। इससे ज्ञान की चरम स्वतंत्रता का बोध होता है। 3. जीव से भिन्न पर वस्तुओं में प्रमेयत्व गुण होने के कारण वे ज्ञान का ज्ञेय बनने के सामर्थ्य से युक्त होती हैं। इससे ज्ञेय की स्वाधीनता का बोध होता है।

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