Book Title: Sramana 2012 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 36
________________ लोकानुप्रेक्षा में वास्तुविद्या : 29 ऐशान दिशा प्रकृति चक्र का प्रस्थान बिन्दु है ऐशान। उसका प्रभावक तत्त्व है जल, जो शान्ति का प्रतीक है, इसीलिए ऐशान दिशा शान्तिदायक है। इस दिशा का अधिष्ठाता है ईशान जिसे शान्तिदायक माना गया है। संस्कृत में ऐशान दिशा ईश शब्द से निष्पन्न है। ईश ईश्वर अर्थ में प्रयुक्त होता है जिसकी आदि वृद्धि होकर ऐशान शब्द की निष्पत्ति होती है। जैनदर्शन में तीर्थकर शब्द भी शान्तिदायक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इन धर्मचक्र के प्रवर्तकों का स्थान, देवालय इसीलिए ऐशान दिशा में बनाया जाता है। अतः ईश जिस स्थान में प्रतिष्ठित है, उसे ऐशान दिशा कहते हैं। तिलोयपण्णत्ती में आचार्य यतिवृषभ ने ऐशान दिशा का महत्त्व बताते हुए कहा है सक्कस्स मंदिरादो, ईसाण दिसे, सुधम्मणाम सभा। ति सयस्स कोस उदया, चउ सय दीहा तदद्ध वित्थारा॥ तत्थेसाण दिसाए, उववाद सभा हुवेदि पुव्व सभा। दिप्पंत रयण सेज्जा, विण्णास विसेस सोहिल्ला॥ तीए दिसाए चेट्ठदि, वर रयणमओ, जिणिंद पासादो। __पुव्व सरिच्छो अहवा पंडुग जिणभवण सारिच्छो॥ अर्थात् सौधर्म इन्द्र के भवन से ईशान दिशा में तीन सौ कोस ऊंचाई, चार सौ कोस लम्बी और इससे आधा दो सौ कोस विस्तार वाली सुधर्मा सभा है तथा वहाँ ईशान दिशा में पूर्व के सदृश उपपाद सभा है। यह सभा देदीप्यमान रत्न शय्याओं सहित विन्यास विशेष से शोभायमान है। उसी दिशा में पूर्व के सदृश अथवा पाण्डुक वन संबंधी जिनभवन के सदृश उत्तम रत्नमय जिनेन्द्र प्रसाद हैं। अर्थात् सौधर्म इन्द्र का संचालन स्थान सुधर्मा सभा ईशान दिशा में है जहाँ से वह स्वर्ग दिशा का संचालन शान्तिपूर्वक करता है तथा पूजा अराधना के लिए ईशान दिशा में अकृत्रिम चैत्यालय है जहाँ शान्तिदायक अरिहन्त भगवान् की प्रतिमा.विराजमान है। जल संसाधन और उससे लगे हुए देवालय या पूजा कक्ष के लिए ऐशान दिशा का विधान है, क्योंकि पूर्व से उदित होते सूर्य की किरणें जल को शुद्ध बनाए रखती हैं और स्नान तथा पूजा के लिए उपस्थित लोगों का तन-बदन प्रफुल्लित कर देती हैं, उन्हें विटामिन डी भी देती हैं। प्रकृति का सबसे बड़ा वरदान सूर्य है। उनका स्वागत करने के लिए मानो पूर्व या पूर्वोत्तर में सिंहद्वार, प्रवेश द्वार, अन्य द्वार तथा बहुत सी खिड़कियाँ बनाने का विधान है। पूर्वोत्तर यानी ऐशान दिशा में भूमि दक्षिण पश्चिम की अपेक्षा नीची

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