________________
तत्त्व विद्या के त्रिआयामी.... : 45 आकाश द्रव्य के जानने से लाभ भगवती सूत्र में गौतम ने भगवान् से पूछा कि भगवान् ! आकाश तत्त्व से जीवों और अजीवों को क्या लाभ? भगवान् कहते हैं कि गौतम! 1. आकाश नहीं होता तो ये जीव कहाँ होते? ये धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय कहाँ व्याप्त होते? काल कहाँ वर्तन करता? पुद्गल का रंगमंच कहाँ बनता? यह विश्व निराधार ही होता। 2. आकाश द्रव्य को जानने से द्वितीय लाभ यह है कि इस आकाश को किसी ने नहीं बनाया है, यह लोक आदि तथा अन्त से रहित है न किसी से विनाशित है, न कोई इसे धारण कर सकता है? अतः छह द्रव्यों में सबसे अधिक व्यापक, विशाल, विराट और सब द्रव्यों का आधारभूत द्रव्य आकाश है। सबके साथ रहते हुए भी उसका अपना अस्तित्व स्वतन्त्र है और उसका परिणमन अपनी पर्यायों में होता है। द्रव्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह स्व में स्थित रहता है, पररूप में कदापि प्रवर्तन/गमन नहीं करता है, न कभी हुआ है, न कभी होगा।
कालद्रव्य समस्त भारतीय दर्शनों ने काल को अपनी तत्त्वमीमांसा में स्वीकृत किया है। वैशेषिक दर्शन ने नौ द्रव्यों में काल को भी एक द्रव्य माना है। उनके अनुसार काल एक नित्य और व्यापक द्रव्य है। 7 नैयायिकों ने भी काल को नित्य माना है। उनके अनुसार परत्व, अपरत्व आदि काल के लिंग हैं।48 सांख्यदर्शन ने काल नाम का कोई स्वतन्त्र तत्त्व नहीं स्वीकार किया है। जड़ जगत् प्रकृति का विकार है। सांख्य दर्शन इस रूप में ही काल को मानता है। जैन दर्शन छह द्रव्यों में काल को भी द्रव्य के रूप में मानता है। कालद्रव्य के भेद काल द्रव्य के दो भेद करते हुए तिलोयपण्णत्ती में यतिवृषभ कहते हैं कि 'कालस्स दो वियप्पा मुक्खामुक्खा हुवंति एदेसुं'' सर्वार्थसिद्धि में भी काल को निश्चयकाल और व्यवहारकाल दो रूप में विभक्त किया है। कालद्रव्य का लक्षण बताते हुए नेमिचन्द्राचार्य कहते हैं कि
दव्वपरिवट्टरुवो जो सो कालो हवइ ववहारो।
परिणामादी लक्खो वट्टणलक्खोयपरमट्ठो॥ अर्थात् जो द्रव्यों के परिवर्तन रूप, परिणाम रूप देखा जाता है वह तो व्यवहार