Book Title: Sramana 2012 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 55
________________ 48 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 34. पंचास्तिकाय तात्पर्यवृत्ति टीका, गाथा-87, पृ. 138, प्रकाशक - पण्डित टोडरमल ___ स्मारक ट्रस्ट, जयपुर 35. जदि हवदि गमणहेदू आगासं ठाणकारणं तेसिं। पसजदि अलोगहाणी लोगस्स य अत्तपरिवुड्ढी। पंचास्तिकाय, 94 36. पंचास्तिकाय, 87 37. भगवती, 13/4 38. वही, 13/4 39. भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं। उत्तराध्ययन सूत्र 28/9 40. तत्त्वार्थसूत्र, 5/3 41. निष्क्रियाणि च। तत्त्वार्थसूत्र, 5/6, 42. आकाशस्यावगाहः । वही, 5/18 43. सव्वेसिं जीवाणं सेसाणं तह य पुग्गलाणं च। जं चेदि विवरमखिलं तं लोए हवदि आयासं। पंचास्तिकाय, गाथा-90 44. अवगासदाणजोग्गं जीवादीणं वियाण आयासं। द्रव्यसंग्रह, 1/19 45. द्रव्यसंग्रह, 1/20 46. भगवती, 13/4 47. न्यायकारिका, 45 48. वही, 46 49. तिलोयपण्णत्ती, 4/279 50. कालोहि विविधः परमार्थकालोव्यवहार कालस्य। सर्वार्थसिद्धि, 3/22/263/2 51. दव्य परिवट्टरूवो जो सो कालो हवेइ ववहारो। परिणामादीलक्खो वट्टणलक्खो य परमट्ठो।। द्रव्यसंग्रह, 1/21 ****

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