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28 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 लोक की दिशा वर्तमान में नक्शे की अपेक्षा से माना जाय तो ऊपर की ओर का हिस्सा उत्तर है तथा नीचे की ओर का हिस्सा दक्षिण कहलाता है। जैन दृष्टि से देखा जाय तो आचार्य यतिवृषभ ने तिलोयपण्णत्ती में लोक के विस्तार के कथन में पूर्वादि दिशाओं का निर्देश किया है- लोक की दक्षिणोत्तर चौड़ाई सर्वत्र जगत्श्रेणी 7 राजू प्रमाण है किन्तु पूर्व-पश्चिम चौड़ाई 7 राजू में कुछ कम है। अतः लोक में अधोलोक की ओर दक्षिण दिशा तथा ऊर्ध्व लोक की ओर उत्तर दिशा है। सौधर्म इन्द्र की दिशा की ओर दक्षिण दिशा तथा ईशान इन्द्र की ओर उत्तर दिशा जानना चाहिए। दूसरा प्रमाण तिलोयपण्णत्ती में प्रथम भाग में गाथा 200 के विशेषार्थ में वर्णित है कि ऊर्ध्वलोक में ब्रह्मस्वर्ग के समीप पूर्व दिशा के लोकान्तभाग से पश्चिम की ओर एक राजू आगे जाकर लम्बायमान अ-ब रेखा खींचने पर उसकी ऊंचाई 7/4 राजू होती है। अतः लोक सिद्धशिला की ओर उत्तर भाग में तथा अधोलोक की ओर दक्षिण भाग में है। वास्तु विद्या में दिशाओं के स्वामी एवं उनका महत्त्व जैन संस्कृति में गृहस्थ को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों को करने का आवश्यक निर्देश दिया गया है। जिसमें गृहस्थ प्रारम्भ के तीन पुरुषार्थों को घर में रह कर तथा मोक्ष पुरुषार्थ को घर त्याग कर पालन करता है। गृहस्थी में रहने वाला मानव अपनी आवश्यकता की पूर्ति घर में ही रहकर करता है जिसमें उसके लिए घर में धर्म, अर्थ, काम, पुरुषार्थ के लिए पूजास्थल, भोजनशाला, जलसंग्रहण स्थल, शौचालय, संग्रहणकक्ष, शयनकक्ष, अतिथिकक्ष, स्वागत कक्ष, वाहन स्थान, स्नानागार, अध्ययनकक्ष आदि सुविधाएँ आवश्यक हैं। वह इन सुविधाओं से सम्पन्न करके अपने घर को स्वर्ग तुल्य बनाना चाहता है। इन सभी सुविधाओं को घर में व्यवस्थित रूप से बनाने के लिए मानव के पास पृथ्वी का छोटा सा भाग ही होता है तथा उसमें चार दिशाएँ, चार विदिशाएँ
और मध्य बिन्दु ये नवभाग होते हैं। इन नवभागों के नव स्वामी हैं जिनका स्वभाव इन नव भागों को प्रभावित करता है। पूर्व दिशा का स्वामी इन्द्र, आग्नेय दिशा का अग्नि, दक्षिण दिशा का यम, नैऋत्य दिशा का निऋति, पश्चिम दिशा का वरुण, वायव्य दिशा का वायु, उत्तर दिशा का कुबेर, ऐशान दिशा का ईशान, और ब्रह्म स्थान का ब्रह्म, स्वामी है। इन आठ दिशाओं-विदिशाओं में तथा ब्रह्म स्थान की उपमा स्वर्ग में रहने वाले इनके स्वामी के निवास स्थान से की जाए तो दिशाओं की वास्तविकता का ज्ञान हो सकता है।