Book Title: Sramana 2012 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 41
________________ 34 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 है। सुर गिरि की प्रदक्षिणा देता हुआ सूर्य समस्त भुवन को प्रकाशित करता है । जिनभवन पर तिलक देने से अर्थात् शिखर पर कलशा चढ़ाने से जगत् में उसका अनुराग नहीं समाता जैसे चंद्रकांत मणि चन्द्रमा की किरणों से मिलकर पानी देने से नहीं रुकता है। जिन भगवान् को चढ़ाये हुए मणि मंडित विशाल चन्दोवा ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे ग्रह और तारागण की माला चन्द्रमा से सम्बद्ध हुई हो। जिनमंदिर में बजता हुआ घंटा भव्यजनों का उत्साहवर्धक एवं पापहारक होता है। पूर्ण चन्द्र वाली रात्रि कुमुदों को आनन्द देनेवाली और अंधकार को हरने वाली होती है । जिन भगवान् को ध्वजा, चमर और छत्र चढ़ाने से राज्य प्राप्त होता है। यदि प्ररोहों, जटाओं के निकलने से वट वृक्ष विस्तृत हो तो कोई आश्चर्य नहीं है। जिनमंदिर में मांडने लिखने से मनोवांछित लक्ष्मी प्राप्त होती है और महापुण्य होता है। उसके फल को कहने के लिए कोई भी समर्थ नहीं है । जम्बूद्वीप, समवसरण, नंदीश्वर द्वीप और तीनों लोकों की रचना को जिनेन्द्र भवन में लिखवाने से सकल दुःखों की हानि होती है | " निष्कर्ष - जैन दर्शन में जीव दो कारणों के कारण संसार में जीवन यापन करता है- प्रथम उपादान कारण एवं द्वितीय निमित्त कारण। आत्म परिणामों को उपादान कारण कहते हैं तथा आत्मपरिणामों में जिनकारणों से परिवर्तन होता है उसको निमित्त कारण कहते हैं। जिस जीव के पास केवल उपादान कारण की प्रबलता पाई जाती है उन्हें मुक्त जीव कहते हैं तथा जिसके पास केवल निमित्त कारण की प्रबलता रहती है वे अजीद कहलाते हैं। परन्तु जिसके पास निमित्त और उपादान दोनों कारणों की प्रबलता रहती है वे संसारी जीव कहलाते हैं। उदाहरण स्वरूप मुक्त जीव उपादान कारण की प्रबलता से निमित्त कारण कर्मों का नाशकर मोक्ष प्राप्त करते हैं तथा जिनमें मात्र निमित्त कारण हैं, उसे भोगने की क्षमता उपादान कारण में नहीं है वे अजीव द्रव्य कहलाते हैं तथा कर्म रूपी निमित्त हेतु के कारण आत्म परिणाम रूपी उपादान कारण में परिवर्तन जिनके होता है वे संसारी जीव हैं। संसारी जीव के जीवन में कभी उपादान की प्रबलता अधिक होती है तो कितने भी निमित्त मिलें, विजय उपादान की होती है तथा कभी निमित्त की प्रबलता अधिक होने से कितना भी पुरुषार्थ करे निमित्त की विजय होती है । वर्तमान युग में जनमानस में निमित्त की प्रबलता अधिक प्रगाढ़ होती जा रही है।

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