Book Title: Sramana 2012 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 45
________________ तत्त्व विद्या के त्रिआयामी आधार-जीव, जगत् एवं उनका अन्तःसम्बन्ध डॉ. रामनेरश जैन किसी भी दर्शन की द्रव्यमीमांसा को उसकी तत्त्वमीमांसा का मूल आधार माना गया है। जैन दर्शन मान्य षद्रव्य में सम्पूर्ण सृष्टि आ जाती है। इसमें जीव, जगत्, ईश्वर अथवा ब्रह्मा एवं ब्रह्माण्ड सब कुछ समाविष्ट हो जाता है। इसलिए आत्मा, परमात्मा एवं जगत् के स्वरूप को समझने के लिए द्रव्य के स्वरूप का यथार्थ परिज्ञान होने के साथ-साथ जीव, जगत् एवं उनके अंतःसंबन्धों को भी समझना अत्यन्त आवश्यक है। प्रस्तुत लेख में लेखक ने आगमिक आधारों पर द्रव्य के स्वरूप का विवेचन करते हुए यह समझाने का प्रयास किया है कि द्रव्य के अभाव में जीव एवं जगत् की व्याख्या नहीं की जा सकती है। - सम्पादक भारतीय दर्शन एवं पाश्चात्य दर्शन दोनों ने तत्त्वमीमांसा को दर्शन का मुख्य आधार माना है। तत्त्वमीमांसा की नींव पर ही ज्ञानमीमांसा और आचारमीमांसा का प्रासाद निर्मित हो सकता है। तत्त्व के मूलस्वरूप की मीमांसा करना तत्त्वमीमांसा का कार्यक्षेत्र होता है। जब तक तत्त्व के मूल स्वरूप का निर्धारण नहीं होता, तब तक दर्शन की आगे की सभी शाखाएँ आधारहीन ही रहेंगी। इस दृष्टि से जैनदर्शन में द्रव्यमीमांसा को जैनदर्शन के मूलाधार के रूप में अभिहित कर सकते हैं। द्रव्यमीमांसा दार्शनिक जगत् का प्रमुख विमर्शनीय विषय रहा है। सभी दार्शनिकों ने अपने दर्शन के आलोक में इसका सम्यक् अवलोकन किया है। द्रव्यमीमांसान्तर्गत जीव, जगत् एवं उनके अंतःसंबन्धों पर चर्चा की जाती है, जो जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में निम्नवत् है'द्रव्य' शब्द का अर्थ भारतीय एवं पाश्चात्य परम्पराओं में द्रव्य शब्द का विशद् विवेचन प्राप्त होता है। अमरकोश एवं हेमचन्द्राचार्य के अभिधानचिन्तामणि नाममाला में धन के अर्थ में 'द्रव्य' शब्द प्रयुक्त हुआ है।' शिवराम आप्टे महोदय ने 'द्रव्य' शब्द का अर्थ सृष्टि भी किया है। सूत्रकृतांग में द्रव्य शब्द भव्य या बंधन-मुक्त प्राणी के अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है। पंचाध्यायी में सत्ता, सत्व, सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ और विधि-ये नौ शब्द द्रव्य के एकार्थक के रूप में स्वीकृत किये हैं।'

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