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तत्त्व विद्या के त्रिआयामी.... : 41 सिद्ध है और स्वभाव से ऊर्ध्वगमन करने वाला है, वह जीव है। अजीव द्रव्य जो चेतना लक्षण से रहित हो, उसे अजीव कहते हैं। ऐसे पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य को अजीव द्रव्य जानना चाहिए इनमें पुद्गल द्रव्य तो मूर्तिमान है, क्योंकि रूप आदि गुणों का धारक है, शेष चारों द्रव्य अमूर्त हैं।।15 पुद्गल द्रव्य 'पुद्गल' शब्द की व्युत्पत्ति पुद्+गल अर्थात् संघात/संयुक्त और गल गलन अर्थात् संयुक्त और वियुक्त से हुई है। तत्त्वार्थसूत्र में 'रूपिणाः पुद्गल: 16 कहकर पुद्गल को परिभाषित किया गया है। राजवार्तिक" में कहा है कि जो भेद और संज्ञात से पूरण और गलन को प्राप्त हो वह पुद्गल है, यह पुद्गल द्रव्य की अन्वर्थ संज्ञा है। द्रव्यसंग्रह" की टीका के अनुसार 'गलनपूरणस्वभावत्वाच्युद्गल:" अर्थात् जो गलन और पूरण स्वभाव से सहित हो वह पुद्गल है। तत्त्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वामी कहते हैं कि जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण पाया जाये वह पुद्गल है। पुद्गल द्रव्य का स्वरूप बताने के पश्चात् उमास्वामी ने पुद्गल की पर्यायें-छाया, आतप और उद्दोत-बताई हैं। द्रव्यसंग्रह में भी इन्हें पुद्गल की पर्याय बताया गया है। पुद्गल के दो भेद हैं-अणवः स्कन्धाश्च -अणु और स्कन्ध। अणु-पुद्गल का वह अविभाजित अंग, जिसके दो भाग न किये जा सकें, वह अणु है। स्कन्ध-दो या दो से अधिक परमाणुओं के बन्ध को स्कन्ध कहते हैं। पुद्गल द्रव्य के उपकार शरीर, मन, वचन और प्राणापान यह पुद्गलों का उपकार है।24 सुख-दुःख जीवितमरणोपग्रहाश्च" अर्थात् सुख-दुःख और जीवन-मरण-यह भी पुद्गलों के उपकारं हैं। ये सुखादि जीव के पुद्गलकृत उपकार हैं, क्योंकि मूर्त कारणों के रहने पर ही इनकी उत्पत्ति होती है। पुद्गल को जानने से लाभ पुद्गल को जानने से यह लाभ है कि जो भी वस्तु है, पदार्थ है वह किसी के द्वारा निर्मित नहीं अपितु स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णमय है और प्रत्येक पदार्थ में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण पाया जाता है। चाहे हमें एक ही लक्षण क्यों न दिखाई दे परन्तु उस पदार्थ में पुद्गल के समस्त लक्षण घटित होंगे एवं जगत् में जो भी पदार्थ