Book Title: Sramana 2012 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 33
________________ 26 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 कण्ठ, हृदय, भुजा और उदर इन नव स्थानों पर तिलक चिह्न करके सदा पूजा करनी चाहिए। तिलक के बिना इन्द्र की पूजा भी निरर्थक है।25 जिन मन्दिरों के निर्माण में 18 प्रकार के स्पृश्य शूद्र ग्रहण किये गये हैं शेष अस्पृश्य शूद्रों को वर्जित किया गया है।26 कृत्रिम जिनबिम्बों का माप कृत्रिम प्रतिमाओं का निर्माण होने के बाद पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराकर मन्दिर में स्थापना कराने की पद्धति प्राचीन काल से चली आ रही है। ये प्रतिमाएँ अचल और चल के भेद से दो प्रकार की होती हैं। गर्भगृह की मूल वेदि पर मूल नायक भगवान् और उनके आजू-बाजू में स्तनसूत्र के माप से विराजमान प्रतिमाएँ अपने स्थान पर स्थिर अचल ही होती हैं। अचल प्रतिमाएँ अपने-अपने स्थान पर स्थिर रहती हैं, किन्तु चल प्रतिमाएँ विशिष्ट अवसरों पर मूल वेदि से उठाकर अस्थायी वेदियों पर एवं गंध कुटी में विराजमान कर स्थानान्तर में भी लायी जा सकती हैं। कृत्रिम चल अथवा अचल प्रतिमा का निर्माण कराते समय उसके माप के विषय में यह ध्यान देना चाहिए कि प्रतिमा का माप विषम संख्या में हो अर्थात् अंगुल, इंच, फुट आदि विषम संख्या में होना चाहिए। सम संख्या में होने पर वह स्थापना करने वाले तथा उस नगर के आराधक भक्तों को कष्ट देने वाली होती हैं। अकृत्रिम जिनबिम्बों का माप द्वारमान के आधार पर बनाया जाता है अर्थात् मन्दिर में मुख्य द्वार की ऊँचाई जितनी होती हैं, उसके आठ या नव भाग करके उसमें से ऊपर का एकभाग छोड़कर शेषभाग के तीन भाग करने पर उसमें से दो भाग की खड्गासन मूर्ति तथा एकभाग प्रमाण का आसन बनवाना चाहिए। पद्मासन मूर्ति निर्माण के विषय में कहा गया है- द्वार की ऊँचाई के बत्तीस भाग करने पर उसमें से 14,13,12 भाग की पद्मासन मूर्ति तभा 16,15,14 भाग की खड्गासन प्रतिमा विराजमान करनी चाहिए।" मध्यलोक में मन्दिर निर्माण की परम्परा भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही देवगृह के निर्माण का प्रचलन रहा है। भक्त अपने गृह से देवगृह को सुन्दर एवं सुसज्जित बनाने में अति आनन्द की प्राप्ति करता है। जैन संस्कृति के इतिहास में मन्दिर निर्माण के विषय में कोई नियत समय निश्चित नहीं है, क्योंकि जैन संस्कृति अनादिनिधन संस्कृति के नाम से प्रसिद्ध है तथा जिसकी संस्कृति अनादिनिधन है उसके देवता, देवप्रतिमा तथा देवगृह के निर्माण अनादि काल से होते रहे हैं। जैनागम में देवताओं के जिनमन्दिर आदि

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