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लोकानुप्रेक्षा में वास्तुविद्या : 25 गई यथोक्त योग्य प्रतिमाओं के निर्माण का कोई लाभ नहीं है और जीवों की उत्पत्ति आदि होने से अनेक दोषों की संभावना है। जिनमन्दिर के ध्वजा से रहित होने पर पूजन-हवन और जप सर्व विलुप्त हो जाते हैं। अतः जिनमन्दिर पर ध्वजारोहण करना चाहिए। जिस जिनबिम्ब को पूजते हुए एक सौ वर्ष व्यतीत हो गये और जिस जिनबिम्ब को उत्तम पुरुषों ने स्थापित किया है, वह जिनबिम्ब यदि अंगहीन है, तो भी पूज्य है, उसका पूजन निष्फल नहीं है जो जिनबिम्ब शुभ लक्षणों से युक्त हो, शिल्पशास्त्र में प्रतिपादित नाप तौल वाला हो, अंग और उपांग से सहित हो और प्रतिष्ठित हो, वह यथायोग्य पूजनीय है। किन्तु जो जिनबिम्ब नासा, मुख, नेत्र, हृदय नाभिमण्डल इतने स्थानों पर यदि अंगहीन हो तो वह प्रतिमा नहीं पूजनी चाहिए। यदि कोई प्रतिमा प्राचीन हो और अतिशययुक्त हो, तो वह अंगहीन भी पूजने योग्य है। किन्तु शिरहीन प्रतिमा कदापि पूजने योग्य नहीं है। उसे गहरे पानी अर्थात् नदी, समुद्रादिक में विसर्जित कर देना चाहिए। देवगृह में पूजा करने की दिशा एवं फल वास्तु के अनुसार श्रावक को घर बनाते समय देवगृह बनाने का निर्देश देते हुए कहा है कि श्रावक को अपने घर की पूर्व की दिशा में श्रीगृह बनाना चाहिए, आग्नेय दिशा में रसोई बनवाना चाहिए, दक्षिण दिशा में शयन करना चाहिए, नैऋत्य दिशा में आयुध आदि रखना चाहिए, पश्चिम दिशा में भोजन क्रिया करना चाहिए, वायव्य दिशा में धनसंग्रह करना चाहिए, उत्तर दिशा में जलस्थान रखना चाहिए और ईशान दिशा में देवगृह बनवाना चाहिए। जो श्रावक अंगुष्ठ प्रमाण भी जिनबिम्ब का निर्माण कराके नित्य पूजन करता है, वह असंख्य पुण्य का उपार्जन करता है। पूजन करने के संदर्भ में कहा गया है कि पुरुष पूर्व दिशा में अथवा उत्तर दिशा में मुख करके जिनेन्द्र का पूजन करे। दक्षिण दिशा में और विदिशाओं में मुख करके पूजन नहीं करना चाहिए। जो पुरुष पश्चिम दिशा की ओर मुख करके श्री जिनेश्वर देव की पूजा करेगा, उसकी संतान का विच्छेद होगा और दक्षिण दिशा में मुख करके पूजन करने वाले को संतान नहीं होगी। आग्नेय दिशा में मुख करके पूजा करने वाले को दिन प्रतिदिन धन की हानि होती है। वायव्य दिशा में मुख कर पूजन करने वाले को संतान नहीं होती है, नैऋत्य दिशा में मुखकर पूजन करने वाले का कुल क्षय होता है। ईशान दिशा में मुख करके पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह सौभाग्य का अपहरण करती है। शान्ति और पुष्टि के लिए पूर्व दिशा में मुख करके पूजन करना चाहिए। उत्तर दिशा में मुख करके पूजन करने से धन की प्राप्ति होती है। गृहस्थों को तिलक लगाए बिना पूजन नहीं करनी चाहिए। चरण, जाँघ, हाथ, कन्धा, मस्तक, भाल,