Book Title: Sramana 2012 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 27
________________ 20 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 अकृत्रिम चैत्यालय एवं अकृत्रिम बिम्बों का माप अकृत्रिम जिनचैत्यालयों की संख्या 85697481 है, जो पृथ्वीकायिक होते हैं वे शाश्वत चैत्यालय कहे जाते हैं। इनमें ऊर्ध्वलोक में 8497023, मध्यलोक में 458 तथा अधोलोक में भवनवासी देवों के भवनों की संख्या कमश: 64 लाख, 84 लाख, 72 लाख तथा छह स्थानों में 76 लाख तथा अंत में 96 लाख है। इन सबके प्रमाण को एक मिला देने पर 77200000 भवनवासी देवों के भवन हैं तथा इन भवनों में प्रत्येक में अकृत्रिम चैत्यालय हैं।' ऊर्ध्वलोक एवं अधोलोक में देवों के भवनों के ईशान दिशा में अकृत्रिम चैत्यालय हैं तथा देवों के प्रत्येक भवन में एक अकृत्रिम चैत्यालय का होना अनिवार्य है । परन्तु मध्यलोक में कुण्डलगिरि, रुचकगिरि, मानुषोत्तर पर्वत, पंचमेरु, 30 कुलाचल, 30 सरोवर, 170 विजयार्ध पर्वत, 20 गजदन्त, जम्बू - शाल्मलि आदि 10 वृक्ष, 4 इष्वाकार पर्वत एवं वक्षार आदि अनेक स्थानों पर स्थित जिनमन्दिरों में असंख्यात् प्रतिमाएँ विराजमान हैं।' ऋद्धिधारी मुनिराज, देव एवं विद्याधर सदैव इनकी पूजा-अर्चना करके अपने कल्मष को धोते हैं। अकृत्रिम चैत्यालय के प्रतिमाओं के विषय में तिलोयपण्णत्तीकार ने कहा है - अट्ठत्तर सय संखा जिणवर पासाद मज्झभागम्मि । सिंहोसणाणि तुंगा सपायपीढा य फलिहमया ॥ सिंहोसणाण उवरिं जिण पडिमाओ अणाइ णिहमाओ । अट्टुत्तर सय संखा पण सय चावाणि तुंगाओ ॥ छत्तत्तयादि जुत्ता पडियंकासण समण्णिदा णिच्च । समचउरस्सायारा जयंतु जिणणाह पडिमाओ । अर्थात् जिनेन्द्र प्रासादों के मध्य भाग में पाद पीठों सहित स्फटिक मणिमय एक सौ आठ उन्नत सिंहासन हैं। उन सिंहासनों के ऊपर पाँच सौ धनुष प्रमाण ऊँची एक सौ आठ अनादिनिधन जिन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। तीन छत्रादि सहित पर्यंकासन समन्वित और समचतुरस्र आकार वाली वे जिननाथ प्रतिमाएँ नित्य जयवंत हों।' अकृत्रिम और कृत्रिम दो प्रकार की प्रतिमाएँ होती हैं। अकृत्रिम प्रतिमाएँ वे कहलाती हैं जो प्रतिमाएँ देवों द्वारा, राजाओं द्वारा एवं अन्य किन्हीं शिल्पियों द्वारा निर्मित नहीं की जाती हैं, अपितु अनेक प्रकार के रत्नों एवं नाना प्रकार के पाषाणों से स्वयं ही तद्रूप परिणमित हो जाती हैं। अनादिकाल से ऐसी ही है तथा अनन्त काल तक ऐसी ही बनी रहेंगी। अकृत्रिम प्रतिमाएँ पृथ्वीकायिक होती हैं। तीनों लोक में अकृत्रिम प्रतिमाओं की संख्या 9255327948 है जिसमें ऊर्ध्वलोक में 917678484, मध्यलोक में 49464 तथा अधोलोक में 8337600000 अकृत्रिम

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