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लोकानुप्रेक्षा में वास्तुविद्या : 19 आदि में विराजमान अकृत्रिम चैत्यालयों का वर्णन तथा तीनलोक में विराजमान कृत्रिम तथा अकृत्रिम जिनबिम्बों आदि का वर्णन बार-बार किया जाता है जिससे वैराग्य की
ओर बढ़ता हुआ साधक या गृहस्थ मार्ग में फँसा हुआ श्रावक दोनों ही लोक के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान करके संसार परिभ्रमण के कारण को जानते हैं। इससे लोक के उत्तम पदों के प्रति मान बढ़ता है तथा नरकादि अधम गतियों से विरक्ति का भाव उत्पन्न होता है जिससे श्रावक तथा साधक पाप कर्मों का अर्जन करने से बचते हैं तथा पुण्य कर्म में अधिक प्रवृत्ति करते हैं। लोक के स्वरूप का चिन्तन करने से तत्त्वज्ञान में विशुद्धि बढ़ती है तथा जो पुरुष उपशम परिणाम स्वरूप परिणत होकर इस प्रकार लोक के आकार का ध्यान करता है वह कर्म-पुंज को नष्ट करके उसी लोक के शीर्ष पद को प्राप्त करता है। जब ध्यान करने वाला ध्याता लोक के आकार के विषय में चिन्तन करता है तो वह लोक में उपस्थित अकृत्रिम चैत्यालय, अकृत्रिम बिंब, कृत्रिम
चैत्यालय, कृत्रिम बिंब, समवसरण, मेरु, नंदीश्वर द्वीप, कुण्डलवर द्वीप, समुद्र में स्थापित देवभवन, देव आवास, नदी, क्रीड़ास्थल, उद्यान आदि का चिन्तन भी करता है जो वास्तु के अन्तर्गत आता है। जब वह इनकी रचना के विषय में चिन्तन करेगा तो वह उसके आकार-प्रकार का समीचीन माप आदि के विषय में भी विचार करेगा जिसे वास्तु की संज्ञा प्रदान की गई है। इस प्रकार लोकानुप्रेक्षा में वास्तु के विषय का जितना अधिक चिन्तन किया गया है वह अन्य अनुप्रेक्षाओं में दृष्टिगत नहीं होता है। वास्तु का अर्थ वास्तु विद्या का अर्थ है भवननिर्माण की कला। इसी को प्राकृत भाषा में वत्थुविज्जा, उर्दू में सनाअत और अंग्रेजी में आर्कीटेटॉनिक्स कहते हैं। धर्म, ज्योतिष, पूजापाठ आदि ने मिलकर वास्तुविद्या को अध्यात्म से जोड़ दिया, जिससे उसका प्रचार- एक आचार संहिता की भाँति हुआ है। उसस समाज की आस्था जुड़ी है। यही कारण है कि वास्तु विद्या अतीत की अवधारणा होते हुए भी वर्तमान में उससे कहीं अधिक उपयोगी है। 'वास्तु' शब्द संस्कृत की वस् क्रिया से बना है, जिसका अर्थ है रहना। मनुष्यों, देवों और पशु-पक्षियों के उपयोग के लिए मिट्टी, लकड़ी, पत्थर आदि से बनाया गया स्थान वास्तु है। संस्कृत का 'वसति' और कन्नड़ का 'बसदि' शब्द भी वास्तु के अर्थ में ही है। हिन्दी का 'बस्ती' शब्द भी वास्तु से सम्बद्ध है, परन्तु वह ग्राम, नगर आदि के अर्थ में प्रचलित हो गया है।