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ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा- जैनदर्शन का वैशिष्ट्य : 17 सम्बन्ध में निमित्त- नैमित्तिक रूप कार्य का कर्त्ता नहीं होता है, क्योंकि व्याप्य-व्यापक भाव के अभाव में कर्ता-कर्म सम्बन्ध घटित नहीं होता है। (अ) समयसार, गाथा 82 की आत्मख्याति टीका । __ (ब) डॉ. उत्तमचंद्र जैन : आचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्व व कृतित्व, पृष्ठ. 447 16. उपादानगत योग्यता-जो स्वयं कार्यरूप परिणमित हो उसे उपादान कारण कहते हैं।
कारण की कार्य को उत्पादन करने की शक्ति का नाम योग्यता है। 17. समयसार गाथा, 15 की आत्मख्याति टीका.
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